बाल मजदूरी
कविता
बाल मजदूरी
बालपन में थकी आंखें ढूंढती,
हंसी-खुशी, प्रेम, स्नेह, अपनत्व थोड़ा,
पर, भूख से चिपटी अपने-अपनों की,
अंतड़ियां, बनती राह में रोड़ा|
तन बचपन में, मगर मन,
युवावस्था का भार लिये,
आंसुओं संग जी रहे चुपचाप
अपने होंठों को सिये|
उनके लिए तारे जमीं पर
आते नहीं आकाश से,
क्यों खुशी? उनके,
आती नहीं है पास में|
खेल-कूद और लिखना पढ़ना
कहां बाल मजदूरी में,
आंसू पीना, दु:ख में जीना
सपने खोना मजबूरी में|
बाल मजदूरों में मन विचलित,
दुःखी रहता सदा,
भावुक" हंसी आती नहीं,
खुशियां भी मिलतीं यदा-कदा....