गुरू पर्व

कविता


 


पंजाब प्रान्त और भारत वर्ष


नानक को पाकर हुए धन्य,


संपूर्ण धरा के हर मानव में


भर आत्मबोध किए चैतन्य |


 


नानक जी ने दिए समाज को


सरल, सहज, संज्ञान,


उनकी अमृत वाणी ने सदैव ही


रखा सभी का ध्यान|


 


सार्थक उनके बोल हैं इतने


तृप्ति लाभ करते जनमानस,


हंसी-खुशी का रहता परिवेश रहे


अमावस या फिर पावस|


 


गृहस्थ रहे पर त्यागी बनकर


छू न सके माया और नेह,


हर स्थिति में सम रहकर के


भरते जन-मन में स्नेह|


 


नानक जी कुछ प्रिय लोगों संग


खूब घूमे देश-विदेश,


जन-गण-मन सब सुने चाव से


भाव भरे उनके उपदेश|


 


निन्दित, घृणित, नीच समाज के


कर लोगों को श्रद्धायुक्त,


ऊंच-नीच और जाति-पांति से


लोगों को किये भय मुक्त,


 


शब्द बीज बोकर के गुरू ने


जन-मन में शुरू किया विकास,


निश्चित समय पर फल लाकर


फैला रहे खुशी और हास|


 


"भावुक" गुरू शिष्य सुधीर हुए जो


उनकी बोली जग कल्याणी,


जन-मन में जव-ज्योत जलाकर


अमस-तमस हरती गुरूवाणी...


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