जन्म और मृत्यु के पार
आयु को घटाने वाला कर्म
जो व्यक्ति दुराचारी होता है, उसकी आयु बहुत कम होती है। धन के मद में जो दूसरों को डराता धमकाता है, शरीर की शक्ति क्षीण होने पर उसे भी वैसे ही डरना पड़ता है जैसे नदी में रहने वाले जल-जन्तु| दुराचारी का अर्थ है जिस व्यक्ति का आचरण शास्त्र मर्यादा के विपरीत है। जो सदा झूठ बोलता है, जो धर्म, कर्म तथा आत्मा परमात्मा को नहीं मानता है| जो पर-नारी से संसर्ग करता है. छल कपट पूर्ण आचरण करता है उसकी आयु जल्दी समाप्त हो जाती है । ऐसे व्यक्ति को अपने सिर पर पहले से कफन बांध कर रख लेना चाहिए। कहीं भी किसी क्षण उसकी मृत्यु हो जाए तो उसके - शव को ढोने वाले कठिनाई में पड़ सकते हैं। मान लीजिए रविवार का दिन हो, या किसी कारण से बाजार बन्द हो, तो कफन नहीं भी मिल सकता है| अतः दुराचारी को पहले से इसकी व्यवस्था कर रखनी चाहिए। पर स्त्री सेवन से मनुष्य की आयु जल्दी नष्ट हो जाती है। इसके सिवा आयु को मिटाने वाला कोई दूसरा कर्म नहीं है।
जो स्नानागार में नंगा होकर स्नान करता है, भूसा, भस्म तथा मरे हुए व्यक्ति की खोपड़ी पर जो बैठता है, दूसरे के स्नान किये हुए जल से स्नान करता है, खड़ा होकर जो पेशाब करता है, फूटी हुई कांसे की थाली में जो भोजन करता है, जो जूठे हाथ-मुंह लेकर सोता है। जो मनुष्य ढेलों को फोड़ता है, तिनको को तोड़ता है, अपने नाखूनों को चबाता रहता है, जो सिर पर तेल लगाने के पश्चात हाथों को धोता नहीं है, उन्हीं हाथों से दूसरे अंगों को छूता रहता है, एवं जो तिल के बने हुए पदार्थ ज्यादा खाता है, उसकी आयु तत्काल नष्ट हो जाती है| धर्मात्मा लोग यमराज द्वारा गाई हुए एक गाथा सुनाया करते हैं। यमराज का कहना है कि जो व्यक्ति जूठे मुंह बैठकर वेद का स्वाध्याय करते हैं, इधर-उधर दौड़कर व्यर्थ के काम करते रहते हैं, मैं उनकी आयु तो छीनता ही हूं, उनके बच्चों की भी उनसे छीन लेता हूं।
अज्ञान के वश में होकर पडवा तिथि को भी जो वेद को पढ़ता है, उसकी विदया और आयु का नाश हो जाता है।
यदि कोई व्यक्ति शान्तिपूर्ण जीवन बिताना चाहता है, तो वास्तुकला के अनुसार अपना घर बनवावे। अच्छे कारीगर से उसका निर्माण कराए। भगवान के मन्दिर को प्रथम स्थान देवे, उनकी पूजा-अर्चना करे, उसका जीवन सुखी होता है।
जो ठीक बीच रास्ते में मल-मूत्र का त्याग करते हैं, जो गौ, ब्राह्मण, अग्नि तथा सूर्य की ओर मुख करके पेशाब करते हैं, दिन में उत्तर की ओर मुख करके, जो मल-मूत्र का त्याग नहीं करते हैं और रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके जो मल-मूत्र का त्याग नहीं करते हैं, उनकी आयु जल्दी ही क्षीण हो जाती है। जो व्यक्ति लम्बे समय तक जीवित रहना चाहता है, उसे चाहिए कि वह ब्राह्मण, क्षत्रिय और सांप इनसे कभी छेड़छाड़ न करे। ये सब बड़े खतरनाक और जहरीले होते हैं। दुर्बल होने पर भी ये बदला चुकाए बिना नहीं मानते हैं। क्रोध से भरा हुआ सांप जहां तक उसकी दृष्टि जाती है, वहां तक धावा बोलकर डस लेता है, उसकी आंखें कैमरे के समान होती हैं, छेड़ने वाले की छवि उसमें आ जाती है, अनेक वर्षों के बाद उससे भी अपना बदला चुका लेता है|
क्षत्रिय भी लगती बात को सुनकर, अपने को अपमानित महसूस करता है और वह शत्रु को नष्ट करने की कोशिश करता है। किन्तु ब्राह्मण तो क्षत्रिय शत्रु और जहरीले सांप से भी ज्यादा खतरनाक होता है, जब वह कुपित होता है तो अपनी अग्निमय दृष्टि और शाप सेतिरस्कार करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण कल को भस्म कर डालता है। विष उसी को मारता है, जो उसे खाता है, आग उसी घर को जलाती है, जिसमें वह लगती हैपर ब्राह्मण की क्रोधाग्नि सात पीढ़ियां पहले की और सात बाद की, इन सबको जलाकर राख कर देती है। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि सेवा सत्कार सेइन तीनों को सदा प्रसन्न रखे। दहकते हुए अंगारों के समान होते हैं, विनम्रता की राख से इनको शान्त कर लेना चाहिए। गुरू यदि तिरस्कार करते हों तो उनका तिरस्कार करते हों तो उनका सत्कार ही करना चाहिए। ब्राह्मण और गुरू की निन्दा मनुष्य की आयु को क्षीण कर देती है। जो गुरू द्वारा किए गए अपमान को सह लेते हैं, वे आगे चलकर महान बनते हैं|
जो व्यक्ति लाल फूलों की माला पहनता है, सोने के समय के दूसरे कपड़े होने चाहिए, सड़क पर घूमने के दूसरे| जो रजस्वला स्त्री का स्पर्श करता है, जिसका सार निकाल लिया हो, ऐसे अन्न का सेवन करता है, उसकी आयु कम हो जाती हैमान लीजिए एक व्यक्ति भोजन कर रहा है, दूसरा भूखा व्यक्ति पास में बैठा हुआ है, वह तरसती दृष्टि से अन्न की तरफ देख रहा है, उसे बिना दिए, जो भोजन करता है, वह पाप खाता है। इसलिये भूखे व्यक्ति को कुछ न कुछ देना चाहिए और ऐसे स्थान पर बैठ कर भोजन करना चाहिए, जहां सबकी दृष्टि न पड़ती होहाथ पर नमक रखकर कभी नहीं चाटना चाहिए। बट, पीपल और गूलर के फल का साग नहीं खाना चाहिए। जो ऐसा करता है, उसकी आयु क्षीण हो जाती है। रात्री के समय दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए, नहीं तो आयु कम हो जाती है। शास्त्रों में ऐसा विधान है, मन पर संयम रखते हुए, प्रातः और सायं केवल दो समय भोजन करना चाहिए, यही उपवास है, किन्तु रसना के स्वाद के लिए जो बार-बार चटपटी चीजें खाता रहता है, उसकी पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। भीतर का तंत्र खराब हो जाता है। और आयु कम हो जाती है। भोजन के समय ज्यादा नहीं बोलना चाहिए। आसन या कुर्सी पर बैठकर आसन या कुर्सी पर बैठकर मर्यादा से भोजन करना चाहिए। किन्तु जो व्यक्ति भोजन के समय बहुत बोलता है, केवल एक धोती या गाऊन पहन कर भोजन करता है, खड़ा-खड़ा खाता है या खाद्य पदार्थ को जमीन पर रखकर खाता है, उसकी आयु कम हो जाती है। जो व्यक्ति बालक के साथ एक थाली में रखकर भोजन करता है, और शत्रु के घर में दी गई दावत आदि में जाकर भोजन करता है तो समझना चाहिए कि इसके सिर पर मौत मंडरा रही है।
धर्म की मर्यादा है घर में कोई अतिथि आया हो, छोटे-छोटे बालक हों, वृद्ध माता-पिता हों उन्हें पहले भोजन देकर घर के मुखिया को फिर भोजन करना चाहिए, किन्तु जो इनको दिए बिना, अकेला थाली में परोसकर बैठकर खाने लगता है, वह भोजन नहीं, बल्कि पाप खाता है। उसका वह अन्न हलाहल विष के समान हानिकारक होता है। घर में पंक्ति में बिठाकर सबको समान भोजन देना चाहिए, साथ में भोजन परोसते समय यह चिन्ता भी नहीं करनी चाहिए कि हमारे लिए भोजन बचेगा या नहींअमुक वस्तु कम वर्तावें या कम वर्तावें। भोजन के बाद हाथ-मुंह धोना चाहिएकुल्ला करना चाहिएहाथ को गीला न रखते हुए पोंछकर अपने स्थान पर बैठना चाहिए, जो इन नियमों का पालन नहीं करता, उच्छृखल होकर जीवन बिताता है, उसकी आयु कम हो जाती है।
जो व्यक्ति बात-बात में दूसरों की निन्दा करता रहता है, किसी को क्रोध दिलाता रहता है, पापी और पतित के साथ जो मित्रता गाठता है। उसके दर्श-स्पर्श की जो इच्छा रखता है, उसकी आयु क्षीण हो जाती है। जो व्यक्ति कुमारी कन्या, कुलटा स्त्री या किसी वेश्या से समागम करता है, अपनी पत्नी के साथ भी दिन में या ऋतुकाल के अतिरिक्त सहवास करता है, वह कुछ ही दिनों का मेहमान हैऐसा समझना चाहिए। उसके सिर पर चील के समान मौत मंडरा रही है।
दुनिया से विदा होता है। यदि कोई व्यक्ति शान्तिपूर्ण जीवन बिताना चाहता है, तो वास्तुकला के अनुसार अपना घर बनवावेअच्छे कारीगर से उसका निर्माण कराए। भगवान के मन्दिर को प्रथम स्थान देवे, उनकी पूजा-अर्चना करे, उसका जीवन सुखी होता है।
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