मैं दिव्य ज्योति स्वरूप हूँ

स्वचिंतन


       मैं दिव्य ज्योति स्वरूप हूँ


                       


यह कटु सत्य है कि संसार के बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ, सम्राट,बादशाह अनगिनत व्यक्तियों पर शासन करते हैं परन्तु वे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख सकते। इसी कारण हम देखते हैं कि उन इतने बड़े व्यक्तियों को भी कहीं जाकर झुकना पड़ता है।


इसलिए जिस व्यक्ति ने अपनी अन्तर की गहराई में प्रवेश कर लिया है उसके पास अमोघ शक्ति आ जाती है। असल में वही योगी है और उसे किसी के आगे झुकना नहीं पड़ता| ऐसे योगी संसार में प्रबल प्रतिभावान माने जाते हैं। वास्तव में जिसने अपने आप को जान लिया है वही योगी है, सच्चा ज्ञानी है, और भक्त भी वही है।


बड़े-बड़े वैज्ञानिकों व अर्थ शास्त्रियों ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी विजय प्राप्त कर ली है लेकिन यदि उन से पूछा जाये- क्या उन्होंने मनुष्य के रहस्य को समझ लिया है। आत्मा को जान लिया है। स्वयं पर विजय प्राप्त कर ली है। वस्तुतः इन प्रश्नों के उत्तर वे नहीं दे सकेंगे। जब हमें अपने बारे में ज्ञान नहीं है तो दुनिया के संबंध में जानने से क्या लाभ? वास्तव में हम सभी इन प्रश्नों को व्यर्थ समझ कर टालते रहते हैं। इस जीवन का सही आशय समझना ही नहीं चाहते हैं।


सही कहूं तो आधयुनिक मानव के लिए यह काम अत्यन्त कठिन है और उसकी शक्ति से परे लगता है। किन्तु जितना कठिन यह लगता है उतना है नहीं। यह सत्य जानने के लिए सम्पूर्ण विश्व में एक ही विकल्प है- उपासना। उपासना एवं ध्यान से धारा, शक्ति प्रगट होती है। इसके अभ्यास से उस शक्ति को स्थिर रखा जा सकता है। साधक को अपना प्रत्येक काम उपासना की उस दिव्य ज्योति अर्थात उस धारा के बीच रहते हुए करना चाहिए। इससे उस दिव्य धारा का प्रभाव बाह्य जीवन पर भी बना रहेगा। उस आंतरिक शक्ति धारा के प्रवाह में कार्य करने से अन्तर और बाह्य, सांसारिक कार्य और आध्यात्मिक उपासना में विरोधाभास नहीं रह जायेगा|


ऐसी गहरी उपासना में स्थिर हो जाने के बाद जब आप विचार करेंगे कि मैं कौन हूं तब यह भान होने लगेगा कि मैं न तो यह मस्तिष्क हूं, न यह शरीर हूं, न मन और न कोई इनमें उठने वाली आकांक्षा। तब भाव स्थिर हो जायेगा कि जो आत्मस्वरूप ज्योति उपासना की आराधना के फलस्वरूप दिख रही है मैं वही प्रदीप्त प्रकाशित दिव्य ज्योति स्वरूप हूं।


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