ओम् महिमा

         साधकों का रक्षा कवच है


                      ओम्


               


इस संसार में बौद्धिक मनुष्यों की दो पंक्तियाँ हैं। आज की व्यवस्था द्वारा एक पंक्ति में व्यापारी वर्ग तो दूसरी पंक्ति में साधारण जनमानस को यात्री बनाया जाता है। आज तक दुनिया की किसी भी शासन पद्वति में साधकों का स्थान सुनिश्चित नहीं किया गया है। साधक को स्वयं ही अपनी उपस्थिति का आभास करना होता है। स्वीकार और तिरस्कार से परे होता है साधक का जीवन। संसार के किसी भी कालखंड या युग में साधक बन पाने का सौभाग्य मात्र पांच प्रतिशत लोगों को ही प्राप्त हो पाता है। अब तक हम लोग यही पढ़ते आए हैं कि जो साधना करता है वही साधक होता है। बताते चलें कि साधक की मन:स्थिति आम और खास जनमानस से शत-प्रतिशत भिन्न होती है। लोक व्यवहार की विपदाओं और कुरुपताओं का सामना करते हुए साधक को सार्थक जीवन पद्वति अपनानी होती है- जो कि अत्यंत दुष्कर कार्य है। आम जनमानस और खास जनमानस का जीवन पथ साधक के जीवन पथ की तुलना में बहुत आसान होता है। वर्तमान समय में सहपाठी के रूप में यात्रा कर रहे यात्री साधकों का उत्पीड़न करने का कोई न कोई बहाना अवश्य ढूंढ लेते हैं। आम और खास वर्ग के लोग अज्ञानतावश अपने असहयोगों और हिंसक शब्दों से साधक के साधना पथ को और अधिक कठिन बना देते हैं। ऐसी परिस्थिति में ॐ एक आलौकिक दिव्यास्त्र के रूप में साधकों का संरक्षण और मार्गदर्शन करता हुआ प्रतीत होता है।


शब्दों के स्वामी के रूप में स्थापित ॐ समस्त संसार का सम्पूर्ण कल्याण करने में स्वयं ही सक्षम है। अतः हम लोग यदि कहें कि साधकों का रक्षा कवच केवल ॐ है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारे चारों वेद, पुराण, उपनिषदों और ग्रंथों के साथ-साथ कालजयी धार्मिक कथा-कहानियों में वर्णित मन्त्रों का उच्चारण भी ॐ से ही आरंभ होता है। रक्षा कवच के सभी स्तोत्र भी ॐ जैसे महासागर से प्रस्फुटित होकर शब्द रूपी छोटी-छोटी नदियों और झरनों का रूप लेकर, हमारे अंतर्मन में विद्यमान अन्धकार को आलोकित करने की क्षमता रखते हैं। ॐ के सार्थक रसपान से न सिर्फ साधना बलवती होती है यद्यपि साधक भी चराचर जगत में आवश्यकतानुसार धन, बल, बाहुबल और बौद्धिक बल के करतब दिखा पाने में सक्षम हो जाता है।


संसार की साधारण व्यवस्था जब साधकों और प्रभु भक्तों पर अत्याचार करने लगते हैं या अपनी विचारधारा थोपने लगते हैं, तो ऐसी परिस्थिति में ॐ साधकों का सेनापति बनकर विघ्नकारी शक्तियों का दमन भी करता है। ॐ केवल एक शब्द नहीं है, ॐ स्वयं में एक सेना है। ॐ स्वयं में एक संपूर्ण महाशक्ति है। यदि साधकों का कवच बनने में सक्षम है ॐ तो साथ दुष्टों का अहंकार हरण कर उनमें भी भक्ति की शक्ति प्रदान करने वाला और कोई नहीं ॐ ही है। ॐ की साधना से भक्ति की सम्पदा प्राप्त कर सकता है साधक और बन सकता है मानव। राजा-रानी, नेता-मंत्री, नौकरशाह-व्यापारी और शिक्षक या विचारक जितनी भी बौद्धिक प्रजातियां हैं। उनको सार्थकता की श्रेणी में पहुंचाने वाला कोई और सिर्फ और सिर्फ ॐ है। जिसके साथ भी ॐ की साधना है उसके रक्षा की जिम्मेदारी भी ॐ के ही हाथ में है | साधक का रक्षा कवच ॐ है। जय


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