योग आसन

              आसनों का विवरण


आसन हमारे शरीर की सम्पूर्ण कार्य-प्रणालियों पर अपना प्रभाव डालते हैं और शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के योग्य बनाते हैं। सुझाव दिया जाता है कि यदि आपने आसनों का अभ्यास पहले कभी नहीं किया हो तो, इसका प्रारम्भ किसी योग्य योग-निर्देशक के निर्देशन में ही करें।


सावधानी


प्रत्येक अभ्यास या आसन में दी गई सावधानियों के प्रति पाठकों को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। यह सुझाव दिया जाता है कि किसी योग्य योग-निर्देशक अथवा डॉक्टर के परामर्श से ही कोई भी आसन या अभ्यास करें, ताकि आपको किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े। यह उत्तरदायित्व पूर्ण रूप से पाठकों का है, इसके लिए प्रकाशक या लेखक किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं होंगे।


                 पश्चिमोत्तनासन


बहुत से लोग दिन में अधिक समय खड़े रहते हैं। इससे रीढ़ की हड्डी पर तनाव आता है। आगे की ओर झुकने वाले आसनों के लगातार अभ्यास से रीढ़ की हड्डी व जोड़ लचीले होते हैं। आंतरिक अंगों में लयबद्धता आती है और नाड़ीमंडल शक्तिशाली होता है। इस आसन को ठीक से करने के लिए यह जरूरी है कि इसे आराम से किया जाये और शरीर से जबरदस्ती न की जाये।पीछे की ओर झुककर किये जाने वाले आसनों के बाद इसे जरूर करना चाहिए।


विधि


1. टांगों को अपने सामने सीधा रखते हुए बैठे। दोनों पैरों के पंजे छत की ओर रहें।


2. अपनी बाजुओं को कानों से लगाकर सीधा ऊपर की ओर खीचें। रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। रीड़ की हड्डी और टांगों को सीधा रखते हुए, घुटनों को मोड़े बिना नितम्ब से आगे की ओर झुकें।


3. जहां तक संभव हो, छाती को जांघों से लगायें और माथे को घुटनों से या घुटनों के आगे लगायेंनये अभ्यासी शुरू में केवल उतना ही झुकें, जितना वे आराम से झुक सकें।


4. इस आसन को ठीक से करने के लिए यह ध्यान दें कि आगे झुकने में रीढ़ की हड्डी में मुडाव न हो। पीठ में अंग्रेज़ी यू (U) जैसा आकार न बने।


5. दोनों हाथों से पंजों को पकड़ने की कोशिश करें।


6. सहज श्वास लेते हुए 30 सेकेंड के लिए इस स्थिति में रूके। 


7. शरीर को वापस पूर्वस्थिति में लायें|


8. इस आसन के अभ्यास के समय घुटने नहीं मोड़ने चाहिए|


9. दो या तीन बार इस आसन को करें|


लाभ


1. इस आसन के अभ्यास से पेट, जिगर सहित बस्ति प्रदेश (Pelvic Region) की मांसपेशियां, अग्नाशय (Pancreas), तिल्ली (Spleen), गुर्दे और उपवृक्क ग्रंथि (Adernal)स्वस्थ रहते हैं।


2. इस आसन से उत्सर्जक और प्रजनन (Urogenital) प्रणाली की अव्यवस्था दूर होती है|


3. इसके अभ्यास से रीढ की मांसपेशियों और नसों में नये रक्त का संचार होता है|


4. अनियमित मासिक धर्म, मधुमेह, यकृत की कार्यशक्ति कम होना, गुर्दे संबंधी समस्या, फेफड़ों की सूजन, उदरशूल (Colitis) और यूसिनोफीलिया के लिए पश्चिमोत्तनासन सबसे उत्तम इलाज है|



सावधानी


1. रीढ़ में विस्थापित मनके (Slipped Disc) से पीड़ित लोगों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए|


2. किसी भी स्थिति में शरीर के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिएसाईटिका, कमर दर्द, जोड़ों के दीर्घकालीन दर्द से पीड़ित लोगों को इस आसन को करने से पहले किसी योग्य योग-निर्देशक से परामर्श करना जरूरी है।


 


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