भूत-प्रेत में अंध विश्वास
भूत-प्रेत में अंध विश्वास
(दादी और घड़ी)
भारतवर्ष के एक गांव में एक लड़का पढ़ लिख कर अच्छा विद्वान हो गया। उसने विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई थी। जिस नगर में विश्वविद्यालय स्थित था वहाँ रहने के कारण उस लड़के ने कुछ अंग्रेजी आदतें सीख लींउसने वहाँ एक घड़ी खरीदी। ग्रीष्मावकाश के तीन महीने वह अपने गांव में जहाँ उसकी दादी रहती थी बिताता थावहाँ उसको समय जानने की आवश्यकता पड़ती थी। इसलिये वह अपनी घड़ी वहाँ ले गया।
परन्तु उसकी दादी घर में इस अनोखी नई वस्तु के आने से प्रसन्न नहीं हुई। नवयुवक अपने साथ कोई अंग्रेजी कपड़े नहीं लाया था। परन्तु अपने अध्ययन के लिये उसे घड़ी का होना अनिवार्य जान पड़ा। नवयुवक ने गांव के घर में अंग्रेजी ढंग से कुर्सियां या मेजें लाने का साहस नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि इनको घर में बहुत खराब माना जाता था। परन्तु घड़ी वह ले ही आया चाहे जो कुछ भी हो। यद्यपि सारा परिवार घड़ी के लाने के विरूद्ध था और उसकी दादी तो बहुत चिढ़ी थी फिर भी वह नहीं माना| उसकी दादी घड़ी जैसी अनोखी वस्तु को सहन नहीं कर सकती थी। उनके लिये वह घड़ी भयानक वस्तु थी। 'अरे यह तो हर दम टिक-टिक किया करती है। यह कैसी खराब और अशुभ आवाज है। इसे तोड़ताड़ कर बाहर फेंक दो। यह बहुत बड़ा अपशकुन है। इसके कारण कोई न कोई महान विपत्ति आयेगी', दादी बोली। नवयुवक ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयत्न किया पर वे न मानी। फिर भी नवयुवक घड़ी को अपने पढ़ने के कमरे में रखे रहा। उसने दादी की बातों की परवाह न की।
दुर्भाग्य से एक दिन घर में चोरी हो गई। कुछ गहने और धन चोरी चला गया। दादी को घड़ी के विरूद्ध एक और प्रमाण या बहाना मिल गया। वे बड़बड़ा उठी, "मैंने तो पहले ही कह दिया था कि यह मनहस घडी कोई न कोई आफत जरूर लायेगी। वहीं हुआचोर हमारे गहने कपड़े और रूपये ले गये परन्तु घड़ी को छोड़ गये। वे जानते थे कि उन्होंने घड़ी को हाथ लगाया तो उनका कल्याण न होगा। अरे भाई इस वाहियात चीज को घर में क्यों रखे हुए हो?इसे फेंक क्यों नहीं देते?यह हम को बर्बाद कर देगी"
किन्तु नवयुवक भी अपने हठ का पक्का था। उस पर दादी को चीखने-चिल्लाने का रत्ती भर भी असर नहीं हुआ। वह घड़ी को अपने कमरे में रखे रहा।
थोड़े ही दिन बाद लड़के के पिता की मृत्यु हो गई। अब दादी का पारा आसमान पर चढ़ गया। वे चीख उठी, 'अरे हठी लड़के। इस मनहूस चीज को तत्काल घर से बाहर फेंक दो। अरे क्या तुम अब भी इसे घर में रखने का साहस कर सकते हो'?
नवयुवक फिर भी घड़ी को रखे रहा। कुछ समय बाद उसकी माता का भी देहान्त हो गया। अब उसकी दादी किसी तरह भी घड़ी का घर में रखने के लिये तैयार न थी। बहत से अज्ञानी लोगों की तरह वे समझती थी कि घड़ी के अन्दर कोई कीड़ा बैठा है जो टिक-टिक करता रहता है और उसे चलाता है। उन्होंने मशीन द्वारा चलने वाली कोई चीज देखी ही न थी। उनकी समझ में आ ही नहीं सकता था कि घड़ी अपने आप चल सकती है। और टिक-टिक की ध्वनि कर सकती है।
दादी को पूरा विश्वास था कि घर पर आने वाली आफतों का असली कारण घड़ी ही थी। इसलिये एक दिन अवसर पाकर वह घड़ी अपने कमरे में उठा ले गई, उसे एक पत्थर पर रखकर एक दूसरे पत्थर से उन्होंने उसे कूच कर टुकड़े-टुकड़े कर डाला और इस तरह उससे अपना बदला ले लिया। लोग इसी तरह इधर-उधर की बातें मिला कर गलत परिणाम निकाल लेते है।