धन धन गुरु गोबिंद सिंह जी
वाहिगुरु जी
धन धन गुरु गोविंद सिंह जी। दो जनवरी को गुरुजी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। परंतु उससे पहले दिसंबर (पोह का महीना), इसमें गुरु जी ने अपना पूरा परिवार देश के नाम पर न्योछावर कर दिया थाकिसी ने कहा है
माली बहुत देखे दुनिया में
पर कोई माली अपने हाथों ना बाग उजाड़ता है।
अपने जीते जी अपनी आंखों के तारों को
बीच मौत के खूह ना कोई उतारता है।
रखे हर कोई परिवार को परो के माला
बाग दश्मेश पिता के न कोई मौत के ऊपर खिलारता है।
जो कर गया पिता तू देश कौम के लिए कुरवानी
उसे आज भी हर कोई निहारता है।
20 से 28 दिसंबर तक के दिन शहीदियों के दिन हैं| इतने दिना में गुरु जी का पूरा परिवार खत्म हो गया था। छोटे साहबजादे और बड़े साहबजादे उनके सिख सब शहीदी को प्राप्त हुए। 6 पोह को गुरु जी ने परिवार और सिखों के साथ अनंदपुर का किला छोड़ दिया था। यह बहुत दर्दनाक घटना है| दिल दहला देनेवाला है। जब मुगल अनंदपुर का किला तोड़ न सके तो उन्होंने कुरान शरीफ की कसमें खाकर गुरुजी को किला छोड़ने के लिए कहा। क्योंकि घेरा डाले मुगलों की सेना मर रही थी। उन्होंने कहा कि अगर आप किला छोड़ दोगे तो आप जहां जाना चाहें, जा सकते हैं। इसी तरह पहाड़ी रानी ने भी आटे की गाय बनाकर कसमें खाई कि गुरुजी हम भी आप पर हमला नहीं करेंगे। परंतु जब गुरु जी ने किला छोड़ा और सरना नदी के पास पहुंचे तो पीछे से 10 लाख मुगलों ने उन पर आक्रमण कर दिया| उस दिन भारी जान-माल का नुकसान हुआ। लाशों के ढेर लग गए।
उस दिन बारिश भी खूब हुई। सरना नदी भी पूरे जोर पर थी। काफी सिख पानी में बह गए और यहीं पर गुरु जी का परिवार तीन हिस्सों में बंट गयाबड़े साहबजादे और गुरु गोविंद सिंह जी चमकोर नदी की तरफ चले गए। माता सुंदर कौर जी और माता साहिब कौर जी रोपड़ की तरफ चल गए और माता गुरज कौर जी और छोटे साहबजादे सतलुज के किनारे किनारे निकल गए। इस तरह 7 पोह को परिवार आपस में बिछड़ गया।
बाद में बड़े साहबजादे अजीत सिंह जी जुजार सिंह जी चमकोर की लड़ाई में शहादत को प्राप्त हुए। 8 पोह 23 दिसंबर का दिन। सबसे दर्दनाक बात तो यह थी कि माता गुजर कौर जो अपने छोटे-छोटे पोते जिनकी उम्र 7 और 9 वर्ष थी, वे अकेले अनजान रास्ते से होते हुए, उस रात उन्होंने कुभा मसकी की झुग्गी में रात गुजारी और यहीं पर उनका रसोइया गगू उन्हें मिल गया और अपने घर पिंडखेड़ी ले गया।
वहां उसने माता जी के पास जो कुछ भी था, सब ले लिया और लालच में आकर माता जी और बच्चों को गिरफ्तार करा दिया। यह गगू छोटा बच्चा था जिसे - माता जी ने पाल-पोस कर बड़ा किया था। फिर क्या था जालिमों ने माता जी और बच्चों को ठंडे बुर्ज में कैद कर लिया। पोह की ठंड में न खाने और न ओढ़ने को कुछ दिया।
तीन दिन तक बच्चों को कचहरी में पेश किया और इस्लाम कबूलने को लेकर डराया, तो भी यह गोविंद सिंह जी के लाल डरे नहीं और मौत कबूल कर ली। जब काजी ने रौब से कहा कि इस्लाम बच्चों और औरतों को सजा नहीं देता, यह गुनाह है। तो वहीं बैठा सूचानंद जो हिन्दू था, उसने कहा कि इन्हें छोड़ना नहीं। यह गोविंद के बच्चे हैं और उसी के जैसे हैं। कि सांप के बच्चे भी सांप ही होते हैं। यह भी बड़े होकर वही करेंगे जो इनके पिता ने किया परंतु वहीं पर मलेर कोटल का नवाब भी बैठा था, जिसके दोनों भाई नवी खान और पेदे खान गुरु जी के हाथों मारे गए थे|
उसने भी बच्चों को मौत की सजा देने से मना किया और उठकर चला गया। लेकिन सूबा सरहद ने काजी से कहकर उन्हें जिंदा दीवारों में चिनने को कहा। इस तरह 24 दिसंबर दोनों बच्चों को दीवार में चिनवा दिया गया। जब वे बेहोश होकर गिर गए तो जालिमों ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया|
यह सुनकर कि बच्चे शहादत को प्राप्त हुए तो माता जी ने भी शरीर त्याग दिया। इतना होने के बाद भी उनका अंतिम संस्कार नहीं होने दिया गया। तब राजा टोडरमल जो कि धर्म से जैनी था, उसने खड़ी बिछाकर जमीन खरीदी और माताजी एवं बच्चों का संस्कार किया, ऐसा कहते हैं। यह विश्व की सबसे महंगी जमीन है।
सरहद की भलेरकोटले का नवाब जो बच्चों के हक में बोला था, आज भी उसके वंशज राज करते हैं। वहां बच्चों ने कर दिया था वह पूरा हुआ। वहां के मुसलमान गुरु गोविंद सिंह जी को आज भी अपना पीर मानते हैं|
युगों युगों तक बातें होंगी
तेरी सिखी और खंडे की धार की
छोटी उम्र खून से रंग दी
साहिबजादेया ईंटें दीवार की
कहां शुरु करूं कहां खतम करूं
लंबी है यह कहानियां अजीत ते जूजार दी
रहती दुनिया तक बातें होंगी
कलगी वालेपा तेरे परिवार की
वाजा वलिपा तेरे हौसले सी
पुत्र सामने शहीद कर दित्ते
लोको लवदे लाल पत्थरा च
तू ता नीवा बीच चिनवा दिते ॥वाहि गुरु जी॥