दिल के दौरे से बचो
स्वास्थ्य
दिल के दौरे से बचो
रोज गौर से पढ़ो, दिल पर लिख लो और अमल करो
देखा जाता है कि आजकल बहुत से लोग दिल की बिमारियों के शिकार हो रहे हैं। बिना शक ये एक तसल्ली की बात है कि अब बहुत सी दवाइयाँ भी इन बिमारियों के इलाज की निकल आई हैं। लेकिन फिर भी काफी लोग दिल का सख्त दौरा पड़ने पर मौत का निवाला बन जाते हैं। बेशक कई मरीजों को इन दवाईयों के इस्तेमाल से राहत भी मिलती है। लेकिन इनके जीवन में मज़ा नहीं रहता। क्योंकि एक तो इनको खाने-पीने के बारे में और कई अन्य बातों का बहुत अधिक परहेज करना पड़ता है, और फिर खटका तो दिल के दौरे का लगा ही रहता है। जो इन्सान को पूरा चैन नहीं लेने देता|
इन्सान को कोशिश करनी चाहिए कि वो दिल के दौरे की इसके आने से पहले ही रोकथाम करके इससे सुरक्षित रहे। इस बारे में पहले ये जानना जरूरी है कि आम तौर पर ये ख्याल किया जाता है कि इन्सान की मौत घड़ी पहले से ही बनी है। और इसे कोई टाल नहीं सकता है। इसको अपनी उम्र के जितने साल और दिन मिले हैं। इनमें कोई कमी-पेशी नहीं हो सकती। लेकिन ये एक भूल है। अगर ऐसी बात होती तो योगी लोग अपनी उम्र में ज्यादती न कर सकते। सच्चाई ये है कि इन्सान की उम्र निश्चित तो जरूर है लेकिन वो इसको सालों और दिनों की गिनती में नहीं मिली, बल्कि सांसो की संख्या में मिली है। यानि जितने साँस इसको मिले हैं, इनको घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता।
लेकिन योगी और दूसरे भी अपने साँसो को नियमित करके अपनी उम्र के सालों और दिनों को बढ़ाते रहे हैं और अब भी बढ़ा सकते हैं, और लापरवाह या गलत तरह की जिन्दगी गुजारने वाले लोग अपनी साँसो में खराबी करके अपनी उम्र के साल घटा भी सकते हैंये अम्ल दोनों तरह का यानि सालों का बढ़ाना और घटाना इस तरह से होता है कि अगर साँस गहरा और धीमा रखा जाएगा या रोक कर रखा जाएगा तो साँसों की मिली हुई निश्चित संख्या ज्यादा समय में समाप्त होगी, और उम्र के साल बढ़ जाएंगे| लेकिन इसके विपरीत अगर सांस की गति तेज हो जाएगी, तो वही मिले हुए साँस थोड़े समय में पूरे हो जाएंगे और उम्र के सालों में कमी घटाने बढ़ाने का यही राज है |
अब सवाल होता है कि साँस की गति को नियमित कैसे किया जाएइसका छोटा सा यही जवाब है कि अपने शरीर और मन को तन्दरुस्त और पक्का रखो। अब फिर सवाल ये होता है कि इन दोनों को स्वास्थ्य और दृढ़ कैसे रखा जाए। इस सवाल का जवाब देने से पहले एक और जरूरी बात समझ लेनी चाहिए कि मन और दिल एक ही चीज नहीं है। उर्दू या फारसी जुबान में मन को भी दिल के नाम से कहा जाता है। है लेकिन हिन्दी और संस्कृत भाषा में दिल को हृदय कहते हैं। दिल या हृदय और चीज है, और मन दूसरी चीज है। दिल या हृदय तो हमारे शरीर का एक ठोस हिस्सा है, और वो शरीर के अन्दर खून के चक्र को चलाता हैइसकी धड़कन पैदा होने से लेकर मरने के दिन तक जारी रहती है। दिल की धड़कन का बन्द होना ही मौत का दूसरा नाम है और इस धड़कन में विघ्न पड़ना ही दिल का दौरा कहलाता है
दिल ठीक तभी कहा जाता है कि जब इसकी धड़कन लगातार चलती रहे। ये तो हुआ दिल! दिल तो आकार वाला है। इसे तो अब डॉक्टर लोग बदलने भी लग गए हैं। लेकिन दिल मन नहीं हैएक मुसलमान लेखक ने जिसको सचमुच में मन ने तंग किया हुआ था। इसको दिल का नाम देकर ही कहता है
अगर दुनिया ये फिर पैदा
करे तु
तो या अल्लाह ये दिल पैदा
न करना
इसका मतलब मन से था। क्योंकि दिल के बिना तो न इन्सान पैदा हो सकता है न जी सकता है। हृदय मगर मन भी तो एक जरूरी तत्व और है।
मन जो दिल से जुदा एक सूक्ष्म तत्व है। इसकी कोई शक्ल नहीं, न रूप है न रंग। इसलिए न इसे देखा जा सकता है न पकड़ा जा सकतावो एक सूक्ष्म चीज हैलेकिन इसका असर शरीर और दोनों पर बड़ा जबरदस्त पड़ता हैइसका काम है संकल्प व विचार या ख्यालात पैदा करनामन अगर मजबूत रहकर रचनात्मक और वीरता के ख्याल पैदा करे। तो वो शरीर और दिल दोनों को ताकत देते हैं|
लेकिन इसके विरुद्ध अगर विचार पड़े, गन्दे, तबाही करने वाले और मायूसी के होंगे, तो शरीर और दिल दोनों को कमजोर करेंगे, ये अगर इस सच्चाई को जाहिर करने के लिए बतलाया गया है कि मन के प्रभाव की बात या मन की शक्ति को अच्छी तरह से महसूस कर लिया जाए और साथ ही ये अमर भी भूलना नहीं चाहिए कि शरीर और मन का गहरा सम्बन्ध है। मन के शरीर पर असर पड़ने की बात तो पहले कह दी गई है। शरीर की कमजोरी या बीमारी का असर भी मन पर पड़ता है। इसलिए दोनों ठीक रहने चाहिएये दोनों ठीक तब समझने चाहिए कि जब ये हल्के रहेंयानि मालूम ही न हो कि ये हैं|
तन्दरुस्त शरीर और मन का किसी को ख्याल नहीं आता। इनका ख्याल इनके रोगी होने पर ही आता है। अब इस प्रश्न का उत्तर देना है कि शरीर और मन को तन्दरुस्त और मजबूत कैसे बनाया जाए।
पहले लेते हैं शरीर की तन्दरुस्ती और मजबूती को। इसके लिए नीचे लिखी हुई बातों की जरूरत है, वही शरीर ठीक रहेगा, कि जिसके लिए इन बातों का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाएगा।
1. शरीर को न तो निकम्मा रखा जाए, न ही ज्यादा थकाया जाए, और न ही ज्यादा मोटा होने दिया जाए, शरीर का मोटापा बड़ी खतरनाक बात है।
2. खाने-पीने के बारे में पूरी सावधानी रखी जाए। इसमें सादगी संयम और समता से काम लिया जाएसादा और सात्विक चीजें खाई जाएँअधिक कड़वी, तीखी, अधिक गर्म, अधिक ठण्डी या देर से हजम होने वाली चीजों से परहेज किया जाए। अधिक खाना बहुत नुकसान करता है|
3. शराब, तम्बाकू या दूसरी नशीली चीजों को जहर समझा जाए।
4. बाकायदा रोजाना वर्जिश या सैर की जाए। प्राणायाम जरूर किया जाए। सांस को धीमा बनाने के लिए ये अच्छा साधन है।
5. शरीर को कुछ देर के लिए हवा, धूप भी लगने देनी चाहिए।
6. तंग कपड़े न पहनने चाहिए, ताकि मसाम दबे न रहें।
7. अपने वीर्य की रक्षा की जाए।ये बहुत जरूरी है। इससे शरीर और बुद्धि दोनों में बल आता है। मन भी प्रसन्न रहता है|
8. अपने खून के दबाव और पेशाब को कभी-कभी टेस्ट कराते रहना चाहिए, और अगर कोई नुक्स पाया जाए तो उसकी तरफ फौरन ध्यान देना चाहिए|
9. कब्ज न रहने दो। अगर हो तो उसे दवाइयों से दूर न करो बल्कि खुराक बदल कर और खास वर्जिश से इसका खात्मा करो, खाँसी का भी खास ध्यान रखो|
शरीर को तन्दरुस्त रखने के लिए शरीर के लिए बातें कही जा चुकी हैं। अब मन की तन्दरुस्ती और मजबूती के लिए जो बातें जरूरी हैं, उनका जिक्र किया जाता है|
1. प्रतिदिन कुछ न कुछ समय प्रभु सिमरण और प्रभु चिन्तन में लगाओ। श्रद्धा और प्रेम से प्रभु प्रार्थना करो।
2. ईश्वर पर भरोसा रखो। जो कुछ वो करे उसे भला मानकर खुश और शान्त रहो।
3. हर प्राणी और हर चीज़ का असली मालिक भगवान को जानो, और अपने आपको सिर्फ सेवकइसलिए किसी भी प्राणी या चीज को अपना मान इससे मोह ममता न करो। ममता मन की सबसे बुरी दुश्मन है।
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