गीता में दैवी सम्पदा
सत्य केवल परमात्मा का नाम है,
वस्तुयें सत्य होती तो साथ जातीं
अहिंसा यह दसवां लक्षण है दैवी सम्पदा का ग्यारहवां लक्षण है सत्य। सत्य तो हमारे जीवन में है ही नहीं महाराज।
हमारे जीवन में तो दिन-रात, नख से लेकर चोटी तक असत्य ही आ गया है। सत्य का तो कहीं नामोनिशान नहीं है। असत्य का कोई मौका हो, असत्य का कोई चांस हो, असत्य की कोई घड़ी हो कभी-कभार असत्य बोल भी दें तो कोई बात भी नहीं हैलेकिन बिना मतलब केनमक कम है तो उसमें भी झूठ बोल देते हैं कि डाला तो था लेकिन पता नहीं कैसे कम हो गया। कमरे में कूड़ा कहाँ से आया? दो बारी झाडू मार दिया था, राम जाने कहाँ से आ गया। जबकि एक बार भी झाडू नहीं दिया। जीवन में छोटी-छोटी बातों में असत्य आ गया है। छोटी-छोटी बातों में झूठ आ गया, तो शांति कहाँ से आएगी। आदमी को नींद क्यों नहीं आती मालूम है आपको? नींद उसे नहीं आती है जो कांटों की सेज पर सोया होता है और जो फूल की सेज पर लेटेगा उसे नींद आएगी। अध्यात्म फूलों की सेज है। यह कांटों की सेज नहीं है। तो यहाँ नींद आ ही जाएगी सत्य हमारे जीवन में नहीं है। सत्य दैवी सम्पदा का ग्यारहवां लक्षण है। महाभारत में कथा आती हैधर्मराज युधिष्ठिर जीवन भर झूठ नहीं बोले, सत्य ही बोले। उन्होंने अपने जीवन में केवल एक बार असत्य बोला, एक बार झूठ बोला|
उनका रथ पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर चलता था, ऐसा महाभारत में लिखा हुआ है। और जैसे ही उन्होंने अपने जीवन में असत्य बोला, उनके रथ के पहिए जमीन से आ लगे।महाभारत में संजय ने धृतराष्ट्र से कहासंजय धृतराष्ट्र से कह रहा है, राजन्! रथ चार अंगुल ऊपर चलता था, अब उसी के पहिए जमीन से आकर लग गए हैं। आज इस जीवन में एक अधर्म हो गया है, एक अनर्थ हो गया है और आज से मनुष्य के जीवन में झूठ और असत्य की प्रवृत्ति आ गई है। पहिए जमीन से लगने का अर्थ समझते हो। इसका मतलब हुआ, आज से मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए झूठ अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना शुरु कर दिया। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने स्वार्थ के लिए ही तो झूठ बोला था। महाभारत उठाकर देखोअर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि श्रीकृष्ण से कहा कि द्रोणाचार्य जी किसी भी समय ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर सकते हैं। ये इतने गुस्से में हैं, ये इतनी उत्तेजना में हैं, ये इतनी निराशा में हैं, ये बार-बार अपने अस्त्रों की तरफ देख रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, ये ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करेंगे, निश्चित करेंगे। अनर्थ हो जाएगा। मनुष्य ही नहीं निरीह पशु-पक्षी भी जलकर राख हो जाएंगे। ऐसा कुछ हो, इससे पहले तुम कह दो कि अश्वत्थामा मर गया। इनके प्राण अपने बेटे में हैं। जैसे ही इन्हें पता चलेगा कि इनका बेटा मर गया है, वैसे ही अस्त्र गिर जाएंगे। महाभारत में लिखा है ऐसा। यह सुना, तो अर्जुन दंग रह गया। श्रीकृष्ण के मुख की ओर देखता रहा। उसने कहा कि यह कह क्या रहे हैं? झूठ बोलने को कह रहे हैं। यद्यपि यह व्याख्या बड़ी डबल है, यह झूठ नहीं है, यह सत्य है। मैं कहूंगा। लेकिन व्यवहार की दृष्टि से तो यह झूठ हो गया। अर्जुन ने साफ इन्कार कर दिया। वह बोला, चाहे मैं यह युद्ध जीतूं या हारूं, लेकिन मैं झूठ नहीं बोलूंगा। भीमसेन ने कहा, मैं बोल दूंगा। भगवान ने कहा, तेरी मानता कौन है। जो सुबह से लेकर सायंकाल तक झूठ बोलता है, उसकी कोई मानेगा क्या? यदि घर में पता लग जाए कि यह बात-बात में झूठ बोलता है तो उसकी मानेगा कोई क्या? यह तो बात-बात पर झूठ बोलता है। श्रीकृष्ण ने कहा, असत्य बोलो, नहीं तो पूरे पांडवों का विनाश होने वाला है। यह ब्रह्मास्त्र उठा रहा है। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने मन में सोचा कि जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र-मंथन किया था तो उसमें से जहर निकल आया थाकोई पीने के लिए तैयार नहीं हुआ। देवताओं और पृथ्वी के लिए शंकर को जहर पीना पड़ा। इस संपूर्ण सृष्टि के लिए अगर मैं झूठ बोल दूं, तो क्या हर्ज है। ये विशेष परिस्थितियां हैं, इसलिए यहाँ सामान्य नियम लागू नहीं होते हैं।
पंजाब में एक महात्मा थे। उनके दर्शन किए हैं मैंने। बड़े सज्जन, बड़े सत्पुरुष। वो मौन ही रहते थे। बोलते नहीं थे। जब भी बोलते थे, तो कहते थे, राम नाम सत्य हैलोगों ने उनका नाम ही रख दिया था- राम नाम सत्य बाबा। सभी लोग परमात्मा की तरह मानते थे, ईश्वर की तरह मानते थे उन्हें। जब कभी लोगों के घर में शादी या विवाह होता तो आशीर्वाद देने के लिए ले जाते। जब दूल्हा घोड़ी पर बैठता शहनाई बजती और जब लोग कहते, आशीर्वाद दो तो कहते ‘राम नाम सत्य है, मजा आ गया।' लोग हंसने लगते।
कहते महाराज, यह तो घोड़ी पर बैठा है, दूल्हा बना हुआ है, शादी के लिए जा रहा है, आप यह क्या कह रहे होवे कहते, राम नाम सत्य है। अभी भी कहूं तो मजा आएगा। जब तुम मर जाओगे, चार कंधों पर जाओगे, साथी तुम्हें लेकर जा रहे होंगे और कह रहे होंगे, 'राम नाम सत्य है, राम नाम सत्य है।' उसमें क्या मजा है। देखो, सत्य परमात्मा का नाम है, ईश्वर का नाम है। उसके अलावा कोई चीज सत्य नहीं है। यह हर कोई जानता है। अगर ईश्वर और परमात्मा सत्य न होता तो अर्थी के पीछे इतना क्यों चिल्लाते? पति सत् रहा? पत्नी सत् रही? बेटी सत् रही? बेटा सत् रहा? बैंक बैलेंस सत् रहा? सोना-चांदी सत् रहे? नीति सत् रही? नहीं न! तभी तो कह रहे हो, राम नाम सत्य है। पता चल गया। तुमको कुछ भी पता नहीं चला, कोई होश नहीं आया। सत्य तो केवल परमात्मा का नाम है। अगर वस्तुएं सत्य होतीं तो तुम्हारे साथ जातीं। जीव के साथ केवल धर्म ही जाता है। सत्य ही जाता है, और कुछ भी नहीं जाता है उसके साथ। सत्य तो चला गया धर्मराज का। लेकिन धर्म को नहीं जाने दिया इन्होंने। जब हिमालय पर गलते गए, द्रौपदी गल गई, भीम गल गया, अर्जुन गल गया, सहदेव गल गया तो महाभारत में लिखा है कि सब गल गए बर्फ से। केवल स्वर्ग तक धर्मराज युधिष्ठिर और एक कुत्ता ही रह गया।
तो एक कुत्ता धर्मराज के साथ गया। देवताओं की भीड़ लगी हुई थी। हाथों में मालायें लेकर खड़े थे। स्वर्ग के द्वार खुले हुए थे। उन्होंने धर्मराज से कहा, पधारिए, आइए, आपका स्वागत है, लेकिन यह कुत्ता नहीं आ सकेगा भीतर। यहां मनुष्य को जगह नहीं मिलती, कुत्ते को कहां जगह मिल पाएगी। इसे बाहर रहने दो। धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा, मेरी पत्नी द्रौपदी साथ नहीं दे सकी, भीम साथ नहीं दे सका, अर्जुन साथ नहीं दे सका, नकुल और सहदेव साथ नहीं दे सके, सबके सब गल गए हिमालय में। केवल इस कुत्ते ने मेरा साथ दिया और यदि मैं इसे बाहर छोड़कर स्वर्ग में जाता हूं तो इसका मतलब हुआ कि मैं कुत्ते से भी नीचे गिर गया। नहीं, मुझे तुम्हारा स्वर्ग नहीं चाहिए। यदि मैं जाऊंगा तो यह भी जाएगा। वरना मैं नहीं जाऊंगासारे देवता मुस्कुराए, कहा कि वो तो भगवान विष्णु थे, धर्म थे, प्रकट हो गए। जीवन के साथ एक धर्म ही जाएगा, सत्य ही जाएगा, और सत्य का हम कैसा प्रयोग कर रहे हैं|
देखो, जब सिकन्दर मरा। मैंने ऐसा सुना है। उसकी आत्मकथा में लिखा हुआ है। मरने से पहले उसने अपने मित्रों को बुलाया और पूछा कि दोस्तों, एक काम करोगे? उन्होंने कहा, बोलो। जब मेरी अर्थी उठे तो मेरे ये दोनों हाथ बाहर कर देना। तो उन्होंने कहा, ऐसा रिवाज नहीं है, ऐसी प्रथा नहीं है। जब किसी की अर्थी उठती है तो हाथ तो कपड़े में ही होते हैं। उसने कहा, छोड़ो, यह रिवाज छोड़ो यह रीति, लेकिन मेरा हाथ बाहर ही रखना और डिंढोरा पिटवा देना कि जिस सिकन्दर ने सारी दुनिया को जीता था, जाते समय उसके भी दोनों हाथ खाली थे। वो भी कुछ लेकर नहीं जा सका। ले जाने की केवल एक ही चीज है या तो वह धर्म है या तो फिर सत्य है। दैवी सम्पदा के दो लक्षण किए, एक 10वां और 11वां। अहिंसा और सत्य ये दो लक्षण हैं। यह विषय सरल है और कठिन भी। एकाग्रता के साथ इसे सुनोगे, मनन करोगे और अपने जीवन से जोड़कर इसे देखोगे, तो सरल हो जाएगा। सिर्फ किताबी ज्ञान के लिए सुनोगे तो मुश्किल लगेगा। इसलिए अध्यात्म को जीवन से जोड़कर देखो। दूसरों से जोड़ने की आदत से बचो, अपने में ढूंढो इन प्रश्नों का समाधान।
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