गीता में दैवी सम्पदा

               बाजी लगानी होगी


               


ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी- सिकंदर ऐसा ही कहता था। पूरी दुनिया को फतेह करने के बाद सिकंदर यही कहता था। वह तो अच्छा हुआ कि जब वह भारत से वापस जाने लगा, तो हिन्दुकुश के पास एक सन्यासी से भेंट हो गई। पूरा का पूरा नशा उतर गया उसका। अहंकार छिन्न-भिन्न हो गया उसका। सन्यासी के पास जाकर खड़ा हो गया, सुबह-सुबह। नदी का किनारा। फकीर लेटा हुआ है रेत के ऊपर। अपने घोड़े पर सवार हो सामने जाकर खड़ा हो गया। सिकंदर को देखकर वह फकीर हंसा। सिंकदर ने म्यान से तलवार निकाल ली। उसने कहा, तुम हंसते हो मुझे देखकर तुम्हें मालूम नहीं कि में कौन हूँ?मालूम पड़ेगा कि में कौन हूँ, तो तुम्हारी यह हंसी न जाने कहाँ चली जाएगी। मैं सिकंदर महान हूँ। यह सुनकर वह फकीर और भी खिलखिलाकर हंसा। सिकंदर ने कहा, यह मेरा अपमान है, यह मेरा तिरस्कार है। वह मुझे मिट्टी में मिलाना है, धूल में मिटाना है तुझको। सिकंदर को देखकर तुम हंस रहे हों सन्यासी ने कहा, अरे, ओ मूर्ख, कायर। तू अपने को महान कहता है। अपने मुख से अपने को महान कह रहा है। मुझे तो तेरे चेहरे पर कोई महानता नहीं दिखाई देती। मुझे तो तू भिखारी दिखाई दे रहा है, दीन-हीन लग रहा है। सड़क पर खड़ा एक कंगाल दिखाई दे रहा है। सुनकर सिकंदर का पूरा शरीर क्रोध से भर गया। आंखें लाल हो गई और उसकी तलवार फकीर की गर्दन की ओर जाने लगी।



सन्यासी ने सिकंदर से कहा और भिखारी कैसे होते हैं, इतनी सम्पत्ति, इतना वैभव, इतना राज्य, जिसके लिए इतनी लड़ाइयां लड़ी, इतनी मारकाट की, उसकी कीमत केवल एक पानी का गिलास। और भिखारी किस तरह के होते हैं, यही तो भिखारीपन है। और तू कह रहा है कि मैं ही ईश्वर हूँ, मैं ही भगवान हूँ। जरा अपने को तौलकर देख, तब कुछ कहना।



उसने कहा कि साबित करो इस बात को कि मैं भिखारी हूँ, नहीं तो यह तलवार चलेगी और तुम्हारी गर्दन जमीन पर गिर जाएगी। फकीर ने कहा कि अरे ओ भिखारी, ओ कंगले, यहाँ भी तू मुझसे मांगने के लिए ही आया है। मेरी गर्दन मांगने आया है भिखारी नहीं तो और क्या है ?उस फकीर ने कहा, अरे ओ सिंकदर! जरा तू इस बात को सोच, जो तू मुझे कह रहा है कि तू मेरी गर्दन उड़ा देगा। मेरी गर्दन तो है ही नहीं। गर्दन का मेरे लिए कोई महत्व नहीं है। त मझसे यह यदि पूछता है कि तू भिखारी कैसे तो मैं तो एक बात पूछता तू यदि मरूस्थल में भटक जाए। वहाँ कोई हरियाली न हो और कहीं भी पानी का नामोनिशान न हो जहाँ जमीन तवे की तरह तप रही हो जहाँ सूर्य आग बरसा रहा हो, जहाँ लू की लपटें जल रही हों, ऐसे मरूस्थल में यदि तू भटक जाए उस समय तेरे होंठ सूख रहे हो तेरे हृदय में अंगारे बरस रहे हो पानी के लिए। उस समय तेरी जान जा रही हो ऐसी घडी में यदि पानी का गिलास लेकर आ जाऊं, तो बताओ क्या दोगे उस समय मुझे। सिकंदर ने कहा, आधा राज्य दे दूंगा। फकीर ने कहा, लेकिन आधा राज्य लेने की बात मैं स्वीकार नहीं करूंगा। तो सिकंदर ने कहा, जहाँ मेरे प्राण जा रहे हों. जहाँ मेरी जिन्दगी जा रही हो, ऐसे में मैं पूरा राज्य भी दे दूंगा। सन्यासी ने कहा और भिखारी कैसे होते हैं, इतनी सम्पत्ति, इतना वैभव, इतना राज्य, जिसके लिए इतनी लड़ाइयां लड़ी, इतनी मारकाट की, उसकी कीमत केवल एक पानी का गिलास। और भिखारी किस तरह के होते हैं, यही तो भिखारीपन है। और तू कह रहा है कि मैं ही ईश्वर हूँ, मैं ही भगवान हूँ। जरा अपने को तौलकर देख, तब कुछ कहना।


श्रीकृष्ण इशारा कर रहे हैं अर्जुन को-ईश्वरोऽहम्। अगर कोई आदमी कह रहा है, मैं ही ईश्वर हूँ, मै ही परमात्मा हूँ, तो... देखो, यदि ऐसे व्यक्ति को डाउन करना हो, या इस आसुरी प्रकृति का नाच बठाना हो, यदि अभिमान को झुकाना हो, तो किसी पहुंचे हुए फकीर के चरणों में पहुंच जाओ, वह तुम्हें बता देगा कि यह आसुरी प्रवृत्ति तुम्हारा क्या-क्या नुकसान करती है। तुम्हें मालूम नहीं है, यह कितना नुकसान कर रही है। आसुरी सम्पत्ति का वर्णन यहाँ श्रीकृष्ण कर रहे हैं। मजबूर कर रहे हैं विचार करने का।


एक सूफी फकीर जंगल में रहता था, अपनी कुटिया में। उसके पास एक बहुत बड़ा कुत्ता था, शेर जैसा कुत्ता। कहीं शिकार खेलने के लिए भटकता-भटकता कोई राजा उधर आ गया। वह उस कुटिया की ओर लपका। कुत्ते ने उसे गले से पकड़ लिया। चिल्लाया बड़ी जोर से, तो फकीर कुटिया से बाहर निकल कर आया। कुत्ते ने राजा को छोड़ दिया। राजा ने कहा, तुम साधु हो, फकीर हो। जंगल में रह रहे हों न सम्पत्ति है, न वैभव है, कुछ भी नहीं है तुम्हारे पास। फिर इस भयानक कुत्ते को क्यों पाल छोड़ा है अपने पास?क्या अर्थ है इस जैसे कुत्ते को रखने का?फकीर ने कहा, अरे ओ सम्राट, मेरी इस कुटिया में तुम्हारे जैसे दूसरे कुत्ते भी आ जाते हैं, उन्हें सबक देने के लिए रखा हुआ है इसे। राजा के अहंकार को फकीर ने टुकड़े-टुकड़े कर दिया। यह काम एक फकीर ही कर सकता है, दूसरा नहीं।


एक बात को देखना अपने पास। जब किसी के पास थोड़ी धन-दौलत आ जाती है, मान-सम्मान आ जाता है, वैभव-एश्वर्य आ जाता है, तो वह पहला हमला परमात्मा पर ही करता है। जिसकी कृपा, करूणा, दया और अनुग्रह से उसे इतना बड़ा पद मिला, गौरव मिला, गरिमा मिली, इतनी बड़ी महानता मिली, उसका वह दुरुपयोग करता है। सबसे पहले वह यही चीज कहता है कि परमात्मा है ही नहीं. ईश्वर है ही नहीं।


अकबर के समय की घटना सुना रहा हूँ। उस समय एक बहुत धनी था। उसने शादी नहीं की थी। वह अकेला ही था। उसके मन में तीर्थ यात्रा करने का विचार आया। तीर्थ-स्थान जाने का संकल्प लाया। उसने सोचा, इतनी धन-संपत्ति, धन और वैभव और मैं तीर्थ यात्रा करने जा रहा हूँ। तीर्थ यात्रा करना उस समय कठिन होता था। कोई सुख-सुविधा नहीं थी तब। मानसरोवर जाने का उसका विचार था। तो उसका एक । मित्र था। शरीर दो थे लेकिन मन एक था। उसने अपने मित्र को बोरों में भरकर हीरे-जवाहरात आदि दे दिए। उसने कहा, मैं वापस आ गया, तो मुझे दे देना, नहीं तो  कहीं दान कर देना, कहीं पुण्य कर देना, कहीं किसी शुभ काम में लगा देना इसे। वह यात्रा को निकल गया। एक वर्ष लग गया। उसके मित्र को तो पक्का विश्वास था कि वह वापस नहीं आएगा। आने का सवाल ही नहीं था। इतने भयानक जंगल। इतना पथरीला और बर्फीला मार्ग। लेकिन वह तो एक-दो वर्ष के बाद वापस लौट आया, तो मित्र को बड़ी हैरानी हुई। करोड़ों-अरबों रुपए हाथ लगे थे, अब तो यह वापस करने पड़ेंगे। यह धन, यह वैभव और यह सारा ऐश्वर्य तुमको जीवन में आसुरी संपत्ति की ओर ले जाएगा। मैं यह नहीं कहता कि धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य बुरा है। लेकिन इसका विष कभी भी तुम्हें इंसान नहीं रहने देगा। यह पशु से भी परले दर्जे का अर्थात् पशु बना देगा। कहाँ चली जाती हैं मनुष्य की ईमानदारियां और कहाँ चला जाता है मनुष्य का संतोष?उस समय बुद्धिमान भी महामूर्ख बन जाता है।


सगे भाई-माँ के गर्भ में जिन्हें जगह मिल गई, लेकिन एक फ्लैट में उन्हें जगह नहीं मिलती। क्यों? संपत्ति के कारण। थोड़ी सी सम्पत्ति के लिए एक भाई दूसरे भाई को खींचकर कोर्ट में ले जाता है।


वापस आकर उसने जब अपनी सम्पत्ति के बारे में मित्र से पूछा, तो उसने कहा, कैसी सम्पत्ति?तुमने कब और किसके सामने मुझे धन दिया है?एक थाली में खाए, एक ही जगह उठे, एक ही जगह बैठे, शरीर में दो और आत्मा दोनों की एक। संपत्ति के लिए मनुष्य राक्षस बन जाता है। किसे कहते हैं आसुरी सम्पदा?किसे कहते हैं आसुरी संपत्ति?ध्यान में तो लो।


जब उसने धन देने से मना कर दिया तो वह सीधा अकबर के पास गया। उसके पास कोई गवाह नहीं था, जो यह कहता कि उसके सामने संपत्ति-धन दिया गया है। अकबर ने इस बारे में बीरबल से सलाह ली। बीरबल ने बलाया दोनों को और उससे पछा. जिसने धन दिया था, कि कोई गवाह है?उसने कहा, कोई गवाह नहीं था। फिर बोला, हाँ! वह पेड़ गवाह है, जिसके नीचे यह सारी संपत्ति दी गई है। बीरबल ने कहा, फिर तो और किसी गवाह की जरूरत ही नहीं है। कहा, जाओ पेड़ को बुलाकर लाओ और कहो उससे कि तुम्हें दरबार में बुलाया गया है। लोगों को लगा कि बीरबल कैसी बातें कर रहे हैं। आदमी नोटिस नहीं लेता है बुलाने पर तो यह पेड़ कैसे आएगा बुलाने से। फिर वह सोचने लगे कि कोई रहस्य होगा। वह जिसने धन दिया था पेड़ को बुलाने जंगल चला गया। जिसने धन लिया था, वह वहीं दरबार में बैठा रहा। थोड़ी देर हो गई। वह सोचने लगा जिसने धन लिया था कि अभी तक नहीं आया, तो बोल पड़ा कि वह पेड़ थोड़ी दूर है। बीरबल ने कहा, तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि वह पेड़ दूर है?अब चुप करके सारी संपत्ति जो ली थी, यहीं रख दो, नहीं तो बेंत से तुम्हारी चमड़ी उधेड़कर रख दी जाएगी।


देहरत में आपने देखा नहीं होगा शायद। किसान बैल जोत कर जब गाड़ी ले जाता है, तो घर में रहने वाला कुत्ता उस गाड़ी के नीचे-नीचे चलता है। कभी उस कुत्ते से पूछो कि गाड़ी के नीचे-नीचे क्यों चल रहे हो, तो वह कहेगा, गाड़ी मेरे ही सिर पर चल रही है। मैं दावे से कह रहा हूँ, कुत्ते इतने बेईमान नहीं होते हैं। कुत्ते इतने मूर्ख और अज्ञानी नहीं होते हैं। कुत्तों को यदि कुछ खिला-पिला दिया जाए, प्रेम से उनकी पीठ पर हाथ फिरा दिया जाए और उन्हें यह समझा दिया जाए कि तुम्हारी पीठ पर गाड़ी नहीं चल रही है, तो वे समझ जाएंगे, मान जाएंगे, लेकिन यह आदमी- आसुरी संपत्ति के मद में उन्मत हुआ आदमी नहीं समझेगा। अगर यह आदमी समझने वाला होता तो यह घोटाले होते, जो आज हो रहे हैं। जो आज नग्न नृत्य हो रहा है, नाच रही है दुनिया और पूरी प्रकति देख रही है। आदमी यदि समझने वाला होता तो हमारी यह हालत न होती। वे तो यह सोचते हैं कि सारा संसार उनके इशारे पर चल रहा है|


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