क्रोध का मनोविज्ञान
क्रोध का मनोविज्ञान
क्रोध का मनोविज्ञान है कि तुम कुछ चाहते थे और किसी ने तुम्हें वह पाने से रोक दियाकोई राह का रोड़ा बन गया, एक रुकावट के रूप में। तुम्हारी पूरी उर्जा कुछ पाने जा रही थी और किसी ने उर्जा को रोक दियातुम जो चाहते थे, नहीं पा सके।
अब यह कुंठित उर्जा क्रोध बन जाती है.. . क्रोध उस व्यक्ति के विरूद्ध जिसने तुम्हारी आकांक्षा के पूर्ण होने की सम्भावना को नष्ट कर दिया होतम क्रोध को नहीं रोक सकते क्योंकि क्रोध एक उपोत्पाद, एक बाइप्रोडक्ट है। लेकिन तुम कुछ और कर सकते हो जिससे यह बाइप्रोडक्ट फिर पैदा न होजीवन में, एक बात याद रखो: किसी भी वस्तु की चाहत इतनी तीव्रता से न करो कि यह तुम्हारे जीवन-मरण का प्रश्न बन जाए। थोड़े हल्के-फुल्के, खेल-पूर्ण बनो।
जीवन में, एक बात याद रखोः किसी भी वस्तु की चाहत इतनी तीव्रता से न करो कि यह तुम्हारे जीवन-मरण का प्रश्न बन जाए। थोड़े हल्के-फुल्के, खेल-पूर्ण बनो।
मैं नहीं कहता कि तुम इच्छा मत करो, क्योंकि यह तुम्हारे भीतर एक दमन बनेगा। मैं कह रहा हूँ, इच्छा करो लेकिन तुम्हारी इच्छा खेलपूर्ण हो। यदि तुम इसे पा सको, अच्छा है। यदि तुम इसे नहीं पा सके, शायद यह सही समय नहीं था; हम इसे अगली बार देखेंगे। खेल की कुछ कला सीखो|
हम आकांक्षा से इतने एकाकार हो गए हैं कि जब इसमें रोड़े अटकाए जाते हैं या इसे रोका जाता है, हमारी अपनी उर्जा आग बन जाती है, यह तुम्हें ही जला देती है। और लगभग पागलपन की उस दशा में तुम कुछ नहीं कर सकते हो, जिसके लिए तुम पश्चाताप कर रहे हो। यह घटनाओं की एक श्रृंखला पैदा कर देती है कि तुम्हारा पूरा जीवन उसमें संलग्न हो जाता है। इसके कारण, हजारों वर्षों से लोग कहते रहे हैं, 'आकांक्षा रहित हो जाओ'। अब इसकी मांग करना कुछ अमानवीय हो जाता है। यहाँ तक कि जिन लोगों ने कहा, 'इच्छा रहित हो जाओ'। उन्होंने भी तुम्हें एक उद्देश्य, एक आकांक्षा दे दिया, यदि तुम आकांक्षा रहित हो जाओ तो तुम मोक्ष की, निर्वाण की परम स्वतंत्रता को उपलब्ध हो जाओगे। वह भी एक इच्छा है।
जाओगे। वह भी एक इच्छा है। तुम अपनी आकांक्षा को कुछ बड़ी आकांक्षा के लिए दबा सकते हो, और तुम भूल भी सकते हो कि तुम अब भी वही व्यक्ति हो। तुमने केवल अपना लक्ष्य बदल दिया है। निश्चित ही, बहुत लोग नहीं है जो मोक्ष पाने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिए तुम्हें बहुत बड़ी प्रतियोगिता का सामना नहीं करना होगा, वास्तव में लोग बहुत प्रसन्न होंगे कि तुमने मोक्ष की ओर जाना शुरू कर दिया है, जीवन का एक प्रतियोगी कम हुआ। लेकिन जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, कुछ नहीं बदला है। और यदि कुछ भी किया जाए जो तुम्हारी मोक्ष की आकांक्षा को बाधा दे, फिर तुम्हारा निरहंकरिता प्रज्वलित हो उठेगा। और इस बार यह अधिक बड़ा होगा, क्योंकि अब तुम्हारी आकांक्षा अधिक बड़ी होगीक्रोध हमेशा आकांक्षा के अनुपात में होता है। जंगल में बहुत पास-पास तीन मठ थे, ईसाई मठ। एक दिन चौराहे पर तीन साधु मिले। वे गांवों से अपने मठ वापस आ रहे थे, प्रत्येक अलग मठ से संबन्धित थे। वे थके हुए थे। वे पेड़ के नीचे बैठ गए और समय बिताने के लिए कुछ बातकरने लगे।
करने लगे। एक आदमी ने कहा, 'एक बात तुम्हें स्वीकार करनी होगी कि जहाँ तक विद्वत्ता का संबंध है, शिक्षा का संबंध है, हमारा मठ सबसे अच्छा है।'
दूसरे साधु ने कहा, 'मैं सहमत हूँ, यह सच है। तुम्हारे लोग ज्यादा पढ़ने वाले हैं, परन्तु जहाँ तक परन्तु जहाँ तक तपस्या का संबंध है, अनुशासन का संबंध है, आध्यात्मिक ट्रेनिंग का संबंध है, तुम हमारे मठ के कहीं पास तक नहीं आते हो। और याद रखना, शिक्षा तुम्हें सत्य के अनुभव करने में सहयोगी नहीं होगीयह केवल आध्यात्मिक अनुशासन है, और जहाँ तक आध्यात्मिक अनुशासन का संबंध है, हम सबसे अच्छे हैं।'
हम सबसे अच्छे हैं।' तीसरे साधु ने कहा, 'तुम दोनों ठीक हो। पहला मठ शिक्षा में, स्कॉलरशिप में सबसे अच्छा है, दूसरा मठ आध्यात्मिक अनुशासन, तपस्या, उपवास में सबसे अच्छा है। लेकिन जहाँ तक शील, निरहंकारिता का संबंध है, हम सबसे ऊंचे हैं'शील निरहंकारिता... लेकिन वह व्यक्ति जो कह रहा है, उससे पूरी तरह बेहोश लग रहा है;' जहाँ तक शील, निरहंकारिता का संबंध है, हम सबसे ऊंचे हैं।'
यहाँ तक कि शील भी एक अहंकार की यात्रा बन सकता है। निरहंकारिता भी अहंकार की यात्रा बन सकता है। बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। तुम्हें निरहंकारिता को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए। तुम्हें किसी भी तरह निरहंकारिता को रोकना नहीं चाहिए, अन्यथा यह तुम्हें जला देगा, तुम्हें नष्ट कर देगा। मै तक जाना है। इसकी जड़ में है कोई आकांक्षा जिसे रोका गया है, और उसकी निराशा ने निरहंकारिता पैदा कियाआकांक्षा को बहुत गंभीरता से मत लोकिसी चीज को गंभीरता से मत लो|