शाश्वत सत्य

कविता


शाश्वत सत्य


दुनिया में जब हम आए


सभी हंसे केवल हम रोए,


किन्तु गए दुनिया से जब


हम चुप थे बाकी सब रोए|


 


शाश्वत सत्य यही दुनिया का


फिर क्यों मानव लड़ता है?


छोटी-छोटी बातों में क्यों?


एक-दूजे से भिड़ता है|


 


जिसने धरती पर जन्म लिया


निश्चित ही उसको मरना है,


धन, दौलत, माया, काया का,


आखिर में क्या करना है?


 


सुख की चाहत में हमसे


कुछ उलटे-सीधे काम हो गए,


सपने भी पूरे हुए नहीं


नाहक हम बदनाम हो गए|


 


छल, प्रपंच, ईर्ष्या, लालच से


कभी नहीं कुछ मिलता है,


मन होता है दुखी, खिन्न


अवसाद हृदय में भरता है।


 


सचमुच में यदि खुशी चाहिए


इच्छाओं पर रखो नियंत्रण,


'भावुक' भूत-भविष्य की छोड़ो


वर्तमान में जी लो हर-क्षण।


Popular Posts