आप अपने भाग्य के निर्माता हैं
यदि आप विपत्ति के सामने अपने भाग्य का रोना सदा रोते रहते हैं, तो आपको स्मरण रखना चाहिये कि आज आप अपने जीवन में जो कुछ हैं उसके लिए स्वयं शत-प्रतिशत जिम्मेवार हैं। आपने अपने भाग्य को अपने हाथों से बनाया है। आपके भूतकाल ने आपके वर्तमान को बनाया है। आपका वर्तमान आपके भविष्य को बनायेगा। आपने जो कुछ भूतकाल में किया है, उसी के फल को आज आप भोग रहे हैं। यदि आप अपने वर्तमान को व्यवस्थित क्रम में रखने के लिए सावधान रहें तो भविष्य अब भी आपके हाथों में है इसलिए आने वाली मुसीबतों के लिए भाग्य को कभी न कोसिये, वरन् सच्चाईयों का साहस से सामना करिये। अपने जीवन के प्रति स्वयं को जिम्मेदार समझना और यह अनुभव करना कि आपके विचार, शब्द और कार्य ही आपके भविष्य के आधार हैं, जीवन के प्रति आपके दृष्टिकोण में एक मुख्य परिवर्तन ला सकता है। इसके अतिरिक्त आपके पास वह शक्ति है, जिसके द्वारा आप अपनी वर्तमान स्थिति में भी परिवर्तन और सुधार ला सकते हैं। आपको भाग्य का गुलाम बने रहने की जरूरत नहीं। विभिन्न बाधाओं के विरूद्ध सकारात्मक विचारों, दृढ़ निश्चय तथा इच्छा शक्ति से किये गये वास्तविक प्रयत्नों द्वारा आप भाग्य की शक्तियों पर विजय पा सकते हैं। यदि आप अपने को परमात्मा के प्रति समर्पित कर दें, तो कर्मों के चक्र से अपने को मुक्त करना और भी सरल हो जाता है क्योंकि तब आपको हर कदम पर दिव्य सहायता प्राप्त होने लगती है
इस प्रकार भाग्य चक्र में, खरीदे हुए एक गुलाम की तरह,सदा चक्कर काटते रहना आवश्यक नहीं। आपमें इस चक्र से बाहर निकलने और इससे नियंत्रित होने के बजाय इसको ही नियंत्रित करने की शक्ति है। जैसे ही आपकी चेतना का स्तर ऊपर उठता है, आपके ऊपर भाग्य की पकड़ ढीली होती जाती है। यही कारण है कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों को भाग्य का भय नहीं होता। वे एक ऐसे स्तर पर होते हैं जहां संसार की वस्तुएं व परिस्थितियां उन्हें प्रभावित नहीं करती वरन् वे स्वयं उन्हें प्रभावित करते हैं। भाग्य चक्र को घुमाने वाला हत्था (हैंडिल) उनके हाथों में होता है, जिससे वे निश्चित परिस्थितियों को बदल सकते हैं। भाग्य उनका सेवक होता है और वे उसके स्वामी। वे हमारी तरह भाग्य के गुलाम नहीं होते और न ही भाग्य उनका स्वामी होता है|
इसका एक दूसरा आयाम या पहलू भी है। जब एक बार आप चेतना का उच्च स्तर और मन का नियंत्रण पा लेते हैं तो आप दुर्भाग्य से प्रभावित नहीं होते। आप कमजोर मन वालों की तरह टूटने की बजाय शांतिपूर्वक उसका सामना कर सकते हैं। जीवन की विपत्तियों के प्रति आपकी प्रतिक्रियाएं और दृष्टिकोण पूरी तरह परिवर्तित हो जाता है। आप उनको गंभीरता से नहीं लेते और न ही उनका विरोध करते हैं। आप समझते हैं कि वे कुछ निश्चित नियमों के अनुसार आयी हैं और कुछ समय बाद चली जाएंगी। इस प्रकार उनसे अनासक्त और अलग रह कर आप इन विपत्तियों को एक दर्शक की तरह देखते हुए मानसिक रूप से स्थिर रहते हैं। यह केवल मन है, जहां आप सब प्रकार की पीड़ाएं, निराशाएं चिंताएं, परेशानियां और भय आदि अनुभव करते हैंएक बार मन को वश में कर लेने पर ये सारी परिस्थितियां आप पर अपनी पकड़ ढीली कर देती हैं और स्वयं को आपके चरणों में समर्पण कर देती हैं।