धन धन बाबा दीप सिंह जी

कथामृत



धन धन बाबा दीप सिंह जी, जिनका जन्मदिवस 26 जनवरी को संसार भर में धूमधाम से मनाया गया। बाबा दीप सिंह जी का जन्म अमृतसर के पास पिंड पहु में हुआइनके पिता भाई भगतू जी और माता का नाम जियूनी था। इनकी परवरिश बहुत प्यार से हुई।



एक बार यह परिवार गुरू गोविंद सिंह जी के दर्शनों के लिए आनंदपुर साहिब गए। वहां गुरू जी के दर्शनों के बाद यह परिवार वहीं रुक गया। तब बाबा दीप सिंह जी ने वहां अमृत चखकर अपना नाम दिया से दीप सिंह कर लिया। काफी दिन रहने के बाद जब मां बाप ने वापस जाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया। गुरू गोविंद सिंह जी ने कहा इनको रहने दो, इन्हें बहुत से दीप जलाने हैंइधर बाबा जी ने सेवा, सिमरन, गुरूमुखी, अरबी, फारसी विधा सिखी। जब गुरू गांविंद सिंह जी ने दमदमा साहिब में गुरू ग्रंथ साहिब जी के स्वरूप तैयार करवाए, जिसमें गुरू तेगबहादुर जी की बाणी दर्ज है वो बाबा दीप सिंह जी ने अपने हाथों से लिखी है। बाणी उच्चारण करी गुरू गोविंद सिंह जी ने। यह ग्रंथ चारों उखतों पर आज भी है।


जब बाबाजी दमदमा साहिब गए तब अब्दाली एक लाख की फौज लेकर आया था। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर को हरमंदर साहिब को तोपों से उड़ाने का और सरोवर को मिट्टी से भरने का हुक्म दिया। जब इन्होंने यह सुना तो इनका खून खौल उठा। तरनतारण अरदास की। लौहगढ़ किले पर 40 हजार की फौज के साथ जहान था, जबर्दस्त था, गांजी था, के साथ लड़ाई हुई। मुगल के कई सेनापति मारे गए। 75 साल की उम्र में बाबा जी दो हाथ 18 सेर की दोधारी तलवार, जिस खंडा कहते हैं, दोनों तरफ से वार हुआ और दोनों का सिर धड़ से अलग हो गया। एक सिंह ने सुना कि बाबा जी ने कहा बाबा जी महर करो, बाबा जी खड़े हो गए। एक हाथ में अपना शीश पकड़ा और दूसरे हाथ से दुश्मनों पर हमला किया। बाबाजी ने अपना शीश गुरू रामदास जी के चरणों में भेंट किया। साहिब में बाबा जी का टाहड़ा साहिब में बाबा जी का संस्कार किया गया और वहीं गुरूद्वारा शहीद बाबा दीप सिंह जी हैं। अमृतसर में परिक्रमा पर जहां बाबा जी ने शीश भेंट किया वो जगह आज भी है। लोग उनके दर्शन करते हैं।


वाहेगुरू जी का खालसा। वाहेगुरू जी की फतह


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