पत्थर पर नहीं, पानी पर लकीर {भाग १}

गीता में दैवी सम्पदा 



अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्॥ दैवी सम्पदा का बारहवां लक्षण है- अक्रोधः। इसका अर्थ है क्रोध नहीं करना। साधारण लगता है जितना, उतना है नहीं।



देखो, एक बात को समझ लो| क्रोध हो ही नहीं, यह सम्भव नहीं है। यह कठिन है। कठिन ही नहीं, यह अति कठिन है कि मनुष्य के जीवन में क्रोध आए ही नहीं। तुम चाहे कितना ही यत्न करो, कितना ही प्रयत्न करो, कितनी ही कोशिश करो, कितनी ही तपस्या करो, कितनी ही साधना करो, लेकिन समय आने पर क्रोध हो ही जाता है, गुस्सा आ ही जाता हैउत्तेजना आ ही जाती है। क्रोध तो होगा हीक्रोध बिना हुए रहेगा ही नहीं|


इसीलिए इस बात को समझ लो, जो श्रीकृष्ण सोलहवें अध्याय में अक्रोध की बाबत कह रहे हैं। क्रोध तो होगा ही, अक्रोध की दशा रहनी अति कठिन है। लेकिन छोटी-छोटी बातों में क्रोध करना उचित नहीं है। जरा-जरा सी बातों में गुस्से में आ जाना, क्रोध में आ जाना, उत्तेजना में आ जाना, चीखने लगना, चिल्लाने लगना, पांव पटकने लगना, पूरे घर को सिर पर उठा लेना, पूरे घर को महाभारत बना देना उचित नहीं हैयह सही नहीं है। जिन्दगी में जो रस आना चाहिए, वह नहीं आएगा। क्रोध की अग्नि जीवन की सारी मधुरता को सोख लेती है।


छोटी-छोटी बातें, जरा-जरा सी बातें- किसी ने निन्दा कर दी तो क्रोध आ गया। किसी ने चुगली कर दी, तो क्रोध आ गया। किसी ने नुक्ताचीनी कर दी, तो क्रोध आ गया। किसी ने पगड़ी उछाल दी, तो क्रोध आ गया। किसी ने हमारी बात को कम किया, तो क्रोध आ गया


किसी ने जरा सा ऊंचा बोल दिया, तो क्रोध आ गया। जरा सी चाय में चीनी ज्यादा हो गई, तो क्रोध आ गया। किसी ने दाल में कम नमक डाल दिया, तो क्रोध आ गयाकिसी ने हमें झुककर प्रणाम नहीं किया, तो क्रोध आ गया। घर में झाडू देने में, सफाई करने में थोड़ा विलम्ब हो गया, तो क्रोध आ गया। भोजन में जरा सी देरी हो गई, तो क्रोध आ गया। पानी का गिलास मंगाया, वह समय पर नहीं आया, वह समय पर नहीं तो क्रोध आ गया।


अब यह जरा-जरा सी बातें हैं। छोटी-छोटी सी बातें हैं जो हमारे जीवन से जुड़ी हुई हैं। अब इन जरा-जरा सी बातों में, छोटी-छोटी बातों में यदि हम क्रोध करने लगेंगे, उत्तेजना करने लगेंगे, तपने लगेंगे, तो हमारी जिन्दगी में कोई रस नहीं आएगा। ध्यान रहे, ये छोटी-छोटी बातें समाप्त होने वाली नहीं हैं। यदि तुम कहो कि जैसा हमारा मन है, जैसी हमारी इच्छा है, इसी के अनुसार सारा घर चले, तो यह मुमकिन नहीं है, संभव नहीं है। तुम्हारे मन के अनुसार ही सारी बातें हों, तो तुम कोई परमात्मा तो हो नहीं। तुम ईश्वर तो नहीं हो। भगवान तो नहीं हो कि जरा से तुम्हारे इशारे पर तुम्हारा घर नाचने लगेगा। तुम सोचते हो, जो कुछ भी हो, तुम्हारे मन के अनुसार हो। तुम यह भी तो सोचो कि जिन आदमियों पर तुम शासन करना चाहते हो, उनके पास भी तो मन है, उनके पास भी तो बुद्धि है। वे भी चाहते हैं कि उनके अनुसार भी सब हो। तुम्हें विचार करना पड़ेगा, मन और बुद्धि सिर्फ तुम्हारे ही पास नहीं है। बस जिन्दगी में इन छोटी-छोटी बातों के रहस्य को हमने जान लिया, तो जिन्दगी रस से भर जाएगी, प्रेम से भर जाएगी।


ध्यान रहे, ये छोटी-छोटी समस्याएं तो घरों में बनी रहेंगी। तुम्हारा दिल भी तपा रहेगा और तुम्हारा दिमाग भी तपा रहेगा। तुमको तनाव भी रहेगा और ब्लडप्रेशर भी रहेगा। तुम्हें बेचैनी भी रहेगी, तुम्हें अशान्ति भी रहेगी| इस अशान्ति और बेचैनी को कभी कोई दूर नहीं कर सकता, कितना ही जप-तप कर लो। कितनी ही पूजा-पाठ कर लो, कितनी ही समाधि में चले जाओ। घरों में तो ये समस्याएं बनी ही रहती हैं। जिन्दगी में तो इन समस्याओं का मुकाबला करना ही पड़ेगा। सेवक तुम्हारे मन के अनुसार काम नहीं कर सकेगाआया तुम्हारे मन के मुताबिक काम नहीं कर सकेगी। ड्राइवर तुम्हारे मन के अनुसार काम नहीं कर सकेगा। तुम यदि यह चाह रहे हो कि सारा कार्य तुम्हारे मन के मुताबिक हो, तो यह अच्छा नहीं है।


अक्रोधः- अक्रोध का अर्थ है, तुम छोटी-छोटी बातों में क्रोध करना छोड़ दो- सोचो, समझोस्थिति को सहन करो। इस ढंग से समस्या का समाधान नहीं होता है। क्रोध से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। देखो, क्रोध तीन तरह का होता है। एक पानी पर लकीर की तरह क्रोध होता है। आप पानी में लकीर खींचिए। एक तरफ वह बनती जाएगी और दूसरी तरफ मिटती जाएगी। लकीर बनेगी जरूर, लेकिन साथ ही साथ मिटती चली जाएगी। पानी पर लकीर स्थायी नहीं होती, एक तो इस तरह का क्रोध होता है|


                                       


जब कोई बच्चा गुस्से में आ जाता है, क्रोध में आ जाता है, तो किस तरह उसकी आंखें लाल हो जाती हैं। किस तरह उसका चेहरा तपने लगता हैकिस तरह वह लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगता है। और किस तरह वह और किस तरह वह जमीन पर पसर जाता हैहाथ-पैर मारने लगता है, किस तरह उसके होंठ फड़फड़ाने लगते हैं| लगता है, बाप रे बाप! आगे चलकर कितना क्रोधी होगा यह|


जिस समय बच्चे को क्रोध आया हो, उस समय संभलकर रहना| उसके हाथ में जो भी चीज आएगी, मार देगा वह आप पर। होश में रहना उस समय। देखना उस समय कि बच्चे के हाथ में कोई चक्कू या इस तरह की चीज न आ जाएआपको लगेगा कि बच्चा बहुत क्रोधी हैआगे जाकर न जाने क्या बनेगागुस्से में आकर, क्रोध में आकर वह बच्चा आपसे कहता है कि मैं जिन्दगी भर आपसे बोलूंगा नहीं| लेकिन पन्द्रह मिनट के बाद वही बच्चा आपकी गोद में बैठा होता है। बीस मिनट बाद वही बच्चा गलबैय्या डालकर आपको चूम रहा होता है। उसे पता ही नहीं कि कभी उसने क्रोध किया था, होता गुस्सा किया था, उत्तेजना में आया था। इस तरह का भी एक गुस्सा होता है। यद्यपि यह भी बहुत ही खतरनाक है। इसमें कोई सन्देह नहीं, लेकिन इतना खतरनाक नहीं है यह।


आप सोचो कि इस तरह का गुस्सा भी आपको न आए, तो यह संभव नहीं है। यह पानी पर खिंची लकीर की तरह है। गुस्सा आया है, और चला गयामेहमान की तरह आयाथोड़ी देर रहा, फिर चला गया। दोनों खुश हैं। यह हमारी फैमिली का मेम्बर बनकर नहीं रहा। गुस्सा दो-चार हफ्ते चले, कोई हर्ज नहीं। ऐसा गुस्सा कोई बहुत खतरनाक चीज नहीं है। जितना हम इससे डर रहे हैं, घबरा रहे हैं, ऐसी चीज नहीं है यह क्रोध।


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