शिशु गर्भ में भी रोता है
जन्म मृत्यु के पार
शास्त्र तो सिद्धान्त की बात कहता है और विज्ञान उस सिद्धान्त को प्रत्यक्ष करके दिखाता है। जिस शरीर के भीतर आत्मा रहता है उस शरीर की जानकारी के सम्बन्ध में विज्ञान बहुत आगे है। वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों से कम नहीं हैं। वे शरीर की दशा को देखकर बता देते हैं, कि यह आदमी कितने दिनों तक जिएगा? एक स्वेद मुनि नाम के गंगेश्वर मण्डल के सन्त थे। डाक्टर के पास चेकअप कराने गए। डा. ने उन्हें भली प्रकार देखा परखा कहा स्वामी जी आप उस आत्मा की बात करते हैं, जो दिखाई नहीं देता और हम उस शरीर की जानकारी रखते हैं, जो दिखाई देता है। यदि आपको कोई चिन्ता या भय न हो तो हम बता सकते हैं, कि आप कितने दिनों तक जियेंगे| सन्त ने कहा चिन्ता किस बात की, आप बताइये, डा. ने कहा आपका शरीर छः महीने से ज्यादा चलने वाला नहीं है| वास्तव में वह महात्मा छः महीने में मर गया। ।
आजकल महिलाएं धूमपान, कोकीन, सुरापान जैसे नशों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करती हैं| अनुसन्धान-कर्ता इस बात की खोज करने में लगे थे, कि इन नशों का गर्भ में होने वाले शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है? न्यूजीलैण्ड के ऑकलैण्ड के विश्व-विद्यालय में एक प्रयोग चल रहा था। इस अनुसंधान के मुख्य डा. थे एडमिचेल| उन्होंने बताया कि हमने किसी महिला के पेट का अल्ट्रासाउण्ड किया | उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की गई। उसके द्वारा जो प्रयोग किया गया था, उसका बड़ी गहराई से अध्ययन किया। उससे पता चला कि माता के पेट पर बहुत धीरे से जो शोर मचाने जैसी आवाज की गई थी, उसके प्रत्युत्तर में भ्रूण ने रोने जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
इस प्रयोग से पहले अमेरिका में होने वाले कैलिफोर्निया के अनुसंधान कर्ताओं ने कहा था, कि मां के उदर में शिशु का विकास होता रहता है, पर 20 सप्ताह तक का शिशु कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है। किन्तु डा. मिचेल ने अपनी खोज से यह सिद्ध कर दिया कि 23 से 30 सप्ताह के भीतर का गर्भ में होने वाले शिशु के मस्तिष्क का काफी विकास हो जाता है, और मां के शरीर में नशे आदि के सेवन से होने वाली प्रतिक्रियाओं का शिशु के मन पर प्रभाव पड़ता है वह भय दर्द और नशे का अनुभव करता है किसी प्रकार का शोर होने पर वह चौंक जाता है। गर्भ के भीतर वह आश्चर्यचकित होता है, वीडियो रिकॉर्डिंग से उन्हें इन सब चेष्टाओं का पता चला था। जैसे कोई व्यक्ति तेज दौड़ रहा हो, ऐसे जोर-जोर से भय के मारे शोर करने पर शिशु का सांस चलने लगता है। उसका मुंह खुल जाता है, और ठोडी कांपने लगती है। ये सब रोने के लक्षण हैं, वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है। इस प्रकार का अनुसंधान 15 भ्रूणों पर किया गया था। ये सबके सब गर्भ में होने वाले शिशु 28 सप्ताह के थे। अध्ययन तो नशे सेवन से होने वाले प्रभाव पर किया जा रहा था पर संयोग से इसकी जानकारी हो गई| डा. मिचेल ने यह भी बताया, कि महिलाएं जो सिगरेट का कश खींचती हैं, या सुरा का सेवन करती हैं, तो शिशु पर उसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ज्यादा शोर करें, ज्यादा शराब पिएं, शिशु को दौरे जैसा पड़ता है। जैसे कोई मिरगी के दौरे से बेहोश जो जाए, ठीक वैसी दशा भ्रूण की होती है। ये जो घरों में विकलांग बच्चे पैदा होते हैं, या विक्षिप्त, गूंगे, बहरे शिशु पैदा होते हैं, उनके जीवन को बिगाड़ने वाली माता-पिता की आदतें और बाहरी परिस्थितियां इसमें कारण बनती हैं। गर्भवती महिलाओं को तीखे-चटपटे नशेदार पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्त्विक विचारों से रहना चाहिए। धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ना चाहिए। सिनेमा तमाशों में नहीं जाना चाहिए। इससे गर्भ में होने वाले शिशु का जीवन बिगड़ सकता है। उसे सदा-सदा के लिये रोना पड़ सकता है।