सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए जरूरी है...

मनोविज्ञान



मैं हमेशा एक शिकायत सुनता हूं, "हम छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते रहते हैं। हर बात पर बहस हो जाती है।" इन झगड़ों का मुख्य कारण केवल अहंकार है। झगड़े के दौरान पति और पत्नी दोनों अपने-अपने मन में सोच लेते हैं कि वो बेहतर तरीके से सब कुछ समझते और जानते हैं। और इसलिए वो हर काम को 'अपने तरीके से' करने का निर्णय ले लेते हैं। इस तरह का फैसला किसी को भी संतुष्टि नहीं देता और ना ही इस तरह के फैसले से बहस की समाप्ति होती है। हमारा अहंकार हमेशा यह सोचता है कि मैं हमेशा सही हूं और इसलिए आसपास के लोगों को वही करना चाहिए जो मैं कहता हूं। युगल अक्सर छोटी-छोटी बातों पर लड़ना शुरू करते हैं जो बाद में एक बड़ी तकरार में तब्दील हो जाती है। अगर आप वाकई में उस झगड़े को बीच में रोककर पूछे, आखिर आप किस मुद्दे पर लड़ रहे हैं?" तो शायद दोनों को इसका जवाब पता नहीं होगा। जीवन जीने का यह कोई तरीका नहीं है। हम झगड़ा करने या शिकायतों में इतना समय बर्बाद कर देते हैं कि हम भूल जाते हैं कि हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। भगवान ने हमें जो दिया है, उन बातों के लिए हम उनका शुक्रिया अदा करना भूल जाते हैं।


एक बार ऑस्ट्रेलिया में मैं एक लेक्चर प्रोग्राम के लिए कार से जा रहा था। कार एक ट्रैफिक सिग्नल पर आकर रूक गई। हमारे कार की खिड़कियां बंद थीं, फिर भी हमारे आगे की कार से कुछ शोरगुल की आवाज आ रही थी। सामने एक बड़ी सी कार थी जिसके पीछे की सीट पर दो खूबसूरत बच्चे बैठे थे। उन्होंने बहुत अच्छे और नये कपड़े पहन रखे थे। बच्चे उन कपड़ों में बहुत जंच रहे थे लेकिन वो भय से कांप रहे थे और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। सामने की सीट पर उनके माता-पिता बैठे थे जो एक दूसरे पर इतनी तेज आवाज में चिल्ला रहे थे कि उनकी आवाज़ हमें भी सुनाई दे रही थी| उनके पास एक खूबसूरत कार थी, खूबसूरत बच्चे थे और वो अच्छे स्वास्थ्य के मालिक भी थे लेकिन फिर भी एक दूसरे पर चिल्ला रहे थे। चिल्लाने की वजह क्या थी? शायद वह मुद्दा बहुत ही छोटा होगा| शायद वह इसलिए गुस्सा होगा क्योंकि उसकी पत्नी ने तैयार होने में बहुत वक्त लगा दिया होगा और इस कारण वो 15 मिनट लेट हो गये होंगे। या वह महिला इसलिए गुस्सा हुई होगी क्योंकि उसने - अपने पति से टाई पहनने को कहा होगा और उसने ऐसा नहीं किया होगा। या फिर शायद महिमा के पति ने पिछले सिग्नल पर बाई ओर गाड़ी मोड़ दी होगी जबकि उस महिला को सीधा रास्ता सही लग रहा होगा। इन लाखों चीजों में से वह एक कारण कुछ भी हो सकता है। लेकिन मुझे इस बात का यकीन था कि यह उनके साथ पहली बार नहीं हो रहा होगा|


क्या हम एक गहरी सांस लेकर अपने अहंकार को खत्म कर आगे नहीं बढ़ सकते? क्या हर अवसर पर खुद पर इतना जोर डालना आवश्यक है? क्या एक क्षण के लिए भी हम किसी और के फैसले के साथ आगे नहीं बढ़ सकते? हमारे शरीर को सीमित मात्रा में जरूरी ऊर्जाएं प्रदान की गई हैं। हमारे जीवन के दिन सीमित हैं और उस दिन के हर घंटे के लिए खर्च की जाने वाली ऊर्जा भी सीमित है। हमें इतनी सारी ऊर्जाएं केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करने में और झगड़ने में व्यर्थ नहीं करना चाहिए। मैंने एक बार बहुत ही खूबसूरत उक्ति पढ़ी थी, अपनी पत्नी के साथ तर्क 'जीतने' जैसी कोई चीज नहीं होती। अगर आपने उस बहस में जीत हासिल की है तो वास्तव में आपने जीत नहीं बल्कि अपनी पत्नी का दर्द, क्रोध और निन्दा हासिल किया है।"


हम काम करते हैं और खुद पर उन इच्छाओं के लिए जोर डालते हैं जो हम पाना चाहते हैंहालांकि हमें अपनी इच्छाओं के लिए जीने या काम करने के बजाय अच्छाई, दूसरों की और इस धरती पर बसे हरेक जीवों की भलाई के लिए जीना चाहिए।


 


 


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