ज्ञानी की उपासना

शंका समाधान 


प्रश्न - मैं सगुण उपासना को पसंद नहीं करता। मुझे यह बताएं कि ज्ञानी किस तरह उपासना करता है। और किसकी उपासना करता है? जबकि सब कुछ आप ही हैं, फिर वह क्या है? और कौन है? जो कहता है कि मैं ब्रह्म हूं'प्रश्न 2- यह सत्य है कि मन की वृत्तियों को एकाग्र करने के लिए कोई साधन आवश्यक है, परंतु जो आदमी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता, वह अपने मन को किस तरह एकाग्र करे? यदि आप कहें कि राधास्वामी मतवालों की तरह शब्द या प्रकाश का ध्यान करे तो वह भी भौतिक ही है परमात्मा तो नहीं है(मास्टर मोहन लाल, नारायणगढ़)



उत्तर- एक ही दवाई सब बीमारों के लिए नहीं होती। हमने तो छोटे से पत्थर में ब्रह्मदृष्टि करके संपूर्ण उपासना सृष्टि में ब्रह्म दर्शन करना है। यदि आपका मन ज्ञान मार्ग की ओर है तो आपको विवेक, वैराग आदि साधनों के द्वारा ही अपने मन को एकाग्र करने का प्रयत्न करना चाहिए। आपको किसी आकार, शब्द या प्रकाश का ध्यान करने की आवश्यकता नहीं है। वह उपाय ज्ञानियों ने पहली सीढ़ी पर खड़े जिज्ञासुओं के लिए रखा है। आप जैसे विचारवानों को तो ज्ञान द्वारा ही मन को एकाग्र करना चाहिए। वास्तविकता यह है कि विवेक विचार द्वारा एकाग्र किया हुआ मन फिर विक्षेप में नहीं पड़ता।


जो लोग किसी आकार, शब्द या प्रकाश का ध्यान कर मन को एकाग्र करते हैं, पर आत्मज्ञान से मुंह मोड़े रहते हैं वो सनातन ज्ञान को छोड़कर ईश्वरी ज्ञान से दूर हो जाते हैं। उनका मन थोड़ी देर के लिए ही शांत होता है। जैसे गर्मी के मौसम में ठंडे जल से स्नान करने के बाद फिर गर्मी लगने लगती है, इसी तरह ऐसा अभ्यास करने वालों का मन जैसे ही समाधि से हटकर संसार के पदार्थों को देखता है तो झट अपनी पुरानी आदत से खिंचा उन्हीं विषयों को ग्रहण करके विक्षेप और आवरण में कैद हो जाता है। उनके लिए संसार वैसे का वैसा ही बना रहता है। और वे निरंतर अभ्यास से भी काल चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते। इसके लिए एक दृष्टांत बड़ा ही अच्छा बैठता है। कहावत है कि एक आदमी ने एक बिल्ली पाली और उसे इस तरह साधा कि उसके सिर पर दिया रख देता और उस दिये के प्रकाश में पुस्तक पढ़ता। पर बिल्ली रत्ती भर नहीं हिलती। इस बिल्ली की प्रशंसा पूरे शहर में फैल गई। बादशाह तक भी इस अद्भुत बिल्ली की सूचना पहुंच गई। अब बादशाह को भी इस बिल्ली को देखने की इच्छा हुई और अपने मन वजीरों को साथ लेकर वह उस आदमी के घर पहुंचा। उन वजीरों में एक वजीर बहुत ज्ञानवान् था, उसने अपनी जेब में एक चूहा डाल लिया और जब सब लोग बिल्ली के सिर पर रखे दीये के प्रकाश में पुस्तक पाठ सुनने लगे तो वजीर ने झट जेब से चूहा निकाला और बिल्ली के सामने छोड़ दिया। बस बिल्ली ने, आव देखा ना ताव, झपटकर चूहे को पकड़ने के लिए लपकी। दीया कहां का कहां जा पड़ा।



जो लोग किसी आकार, शब्द या प्रकाश का ध्यान कर मन को एकाग्र करते हैं, पर आत्मज्ञान से मुंह मोड़े रहते हैं वो सनातन ज्ञान को छोड़कर ईश्वरी ज्ञान से दूर हो जाते हैंउनका मन थोड़ी देर के लिए ही शांत होता है।



यही हाल उन लोगों के मन का है जो ज्ञान, विचार से शून्य हैं। जिनकी दृष्टि में संसार की सत्ता ज्यों की त्यों बनी रहती है और मिथ्या भाव प्रकट नहीं होता। उनकी समाधि क्षणिक होती है। परंतु ज्ञानी के मन की अवस्था हर दशा में स्थिर रहती है। वह आंखें बंद करे या खुली रखे, भीतर-बाहर सर्वत्र ब्रह्म का ही अनुभव होता है। वह संसार को मिथ्या और ब्रह्म को सत् समझता है, इसलिए उसका मन सांसारिक पदार्थों की ओर चलायमान नहीं हो पाता। इसलिए शेष सब साधन ऐसे ही व्यर्थ हैं, जैसे कमरे में अंधेरा दूर करने के लिए पंखा चला देना या झाडू लगा देनाअंधेरा तो प्रकाश से ही दूर होगा न कि पंखे या झाडू से। इसी तरह अज्ञान के कारण हमने संसार को तो सत् समझ रखा है और आत्मा को दूर कहीं बहुत दूर खोज रहे हैं। कभी शब्द के द्वारा और कभी प्रकाश के द्वारा उस तक पहुंचने का प्रयत्न करते हैं जो कि सब कर्म और उपासना की पहली कक्षा के अभ्यास हैंयदि विचारपूर्वक देखा जाए तो परमात्मा तो सदा ही हमारे अंग संग हैं! वह हमारी बुद्धि रूपी गुफा में अपने प्रकाश से जगमगा रहा है। वह चेतन देव तो कभी दूर हुआ ही नहीं। इसके होने का प्रमाण ही हमारा जीवन है। यदि वह चेतन न हो तो हमारा जीवन कहां? इसके बिना तो यह नास्तिक शरीर जड़ है। वही बाहर है, वही अंदर है। सब कुछ वही है। मन का विक्षेप और क्या है? यही तो है कि वह सांसारिक पदार्थों का तो चिंतन करता है, पर अपने चेतन स्वरूप को भूल जाता है।


 


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