परमात्मा के प्रत्यक्ष दर्शन
शंका समाधान
प्रश्न - आम लोग पुराने विचारों के कारण परमात्मा, वाहेगुरू, खुदा, गॉड आदि में विश्वास रखते हैं, लेकिन मुझे तो यह केवल भ्रम ही लगता है, क्योंकि यदि कोई परमात्मा होता तो दिखाई भी देता। मैं तो केवल उसी को मानता हूं जो आंखों से देखी जा सके। शेष सब झूठ है। आप कोई उपाय बता सकें तो बताएं। (ईशर सिंह)
उत्तर- प्यारे सज्जन! आपने जो प्रश्न किया है वो केवल आपका ही नहीं, वरन् आजकल सारी ही दुनिया का है। और इसके उत्तर में जितना लिखा जाए, थोड़ा है। क्योंकि इन चमड़े की आंखों से । परमात्मा के दर्शन नहीं हो न सकते और ज्ञानचक्षुओं से ही उसे देखा जा सकता हैइसलिए आपको भी अपने ज्ञानचक्षु खोलने होंगे।
जिन-जिन महापुरुषों ने इन मौलिक नेत्रों को अंतर्मुख कर जिनकी आंखें खोली हैं, उन्होंने परमात्मा का अनुभव पा लिया है और उन के अनुभव से ही हम कह सकते हैं कि परमात्मा है। और परमात्मा के अतिरिक्त कोई दूसरी वस्तु है ही नहीं। जो कुछ भी आपको इन नेत्रों से दिखाई देता है वह सब परमात्मा का ही रूप है परंतु क्योंकि आपका बुद्धि रूपी तीसरा नेत्र (ज्ञान चक्षु) नहीं खुला इसलिए यह सब परमात्मा होते हुए भी आपको परमात्मा नहीं केवल नामरूप जगत् ही दिखाई देता है। सुनार की दृष्टि में सब आभूषण सोना ही होते हैं, परंतु जिसकी दृष्टि सोने में ही नहीं वह सोने को देखते हुए भी सोने को नहीं देखता और कहता है कि यह तो कान की बाली है, यह कड़ा है, यह नथ है, यह अंगूठी है आदि आदि। परंतु इसकी दृष्टि भी जब सुनार की तरह सोने को देखने लगेगी तो आभूषण सोने में कल्पित प्रतीत होने लगेंगे।
नामदेव जी ने कहा है-
एक अनेक व्यापक, पूरण, जित देखू तित सोई
माया चित्र विचित्र अद्भुत विरला बूझे कोई।
सब गोविंद है, सब गोविंद है, गोविंद बिन नहीं कोई,
सूत अनेक मणि सहस्र पिरोए, ओतप्रोत प्रभु सोई|
जल तरंग और फेन बुलबुला,जल से भिन्न न होई,
यह प्रपंच परब्रह्म ही लीला विचरत आन न होई|
मिथ्या, भ्रम और स्वप्न मनोरथ सत् पदार्थ जाने,
सो करनी जो गुरू उपदेशा जगत् ही मन माने।
कहत नामदेव हरी की रचना देखो हृदय विचारी,
घट घट अंतर सर्व निरंतर केवल एक मुरारी। (गुरुवाणी)