सुख-दुख क्या है? (भाग-१)
मीमांसा
दुख क्या है? और सुख क्या है? उसके बारे में आपने बहुत बार विचार किया होगा। कभी-कभी आप बहुत दुखी होते हैं और विचार करते-करते आप खुद ही सोचते हैं कि यह तो कोई बात नहीं इससे क्या हो सकता है? और आप दुख को बिल्कुल भूल जाते हैं। कुछ शारीरिक दुख होते हैं वह भी जब आप उसकी तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं तो वह बढ़ जाता है और जब उसे भुलाते हैं तो वह कम हो जाता है।
इससे पता चलता है कि हमारी आत्मिक और मानसिक शक्ति का बहुत प्रभाव पड़ता है। और कुछ तकलीफ शारीरिक और मानसिक ऐसी भी होती है जो भुलाने से भी नहीं जाती। उसके बारे में आप ऐसा करें कि अपनी तकलीफों को कागज़, पेंसिल लेकर लिखना शुरु करें तो आप जानेंगे कि आप आधी तकलीफ भी लिख नहीं सकेंगे। यह भी कोई बात है और फिर अन्त में वह रह जाये जो आप लिख सकते हैं तो आप फिर विचार करें कि इससे ज्यादा से ज्यादा क्या नुकसान हो सकता है और उसके लिए तैयार हो जायें तो दुख दूर हो जायेगा।
दुख और सुख मन के ही संकल्प विकल्प हैं। हम एक ही बात के लिए दुखी होते हैं और विचार करते-करते उसको भूल जाते हैं और कहने लगते हैं कि परमात्मा की यही मर्जी है या मेरे भाग्य में ही यह लिखा है तो मैं तैयार हूं।
हर आने वाले दुख के लिए आपको तैयार रहना चाहिए। क्योंकि सुख होगा तो दुख भी साथ में आयेगा। बल्कि दुख न हो तो सुख का क्या सार है? दुख में ही तो सुख का पता चलता है कि कौन मेरा कौन पराया है| महाभारत की लड़ाई में जब पाण्डव जीत जाते हैं तो भगवान कृष्ण कुन्ती से पूछते हैं कि अब तुम क्या चाहती हो तो कुन्ती ने कहा था कि मुझे तो दुख ही देते रहना ताकि मेरे मन से आपकी याद न जाये। दुख होगा तो मैं आपको भुला न सकूँगी।'
आपको भुला न सकूँगी।'मेरा अपना अनुभव है कि विपत्ति में आप उसका मुकाबला करने के लिए अपने अन्दर अधिक से अधिक शक्ति पैदा करें क्योंकि दुख के समय धैर्य का होना बहुत जरुरी है। बहुत से लोग तो प्राण ही त्याग देते हैं या संसार से भागने की कोशिश करते हैं। यह कोई दुख को दूर करने का उपाय नहीं है।
अगर आप इतिहास पर ध्यान दें तो आपको इसके बारे में पता लगेगा कि हमारे पूर्वजों ने उसका कैसे मुकाबला किया। सदा किसी के भी दिन एक समान नहीं होते। और न कोई सदा दुखी रहता है और न सदा सुखी| इस परिवर्तनशील संसार में सुख और दुख गाड़ी के पहियों की तरह ऊपर-नीचे होते रहते हैं। समय के साथ मनुष्यों की अवस्थाओं में परिवर्तन होता है। सूर्य की भी एक दिन में तीन अवस्थायें होती हैं। प्रातः कुछ, दोपहर कुछ और सायं कुछ। उसी तरह मनुष्य की अवस्थायें बदला करती हैं। इन बातों को समझकर धीर पुरुष कभी विपत्ति में नहीं घबराता|
जो लोग भारी से भारी विपदा पड़ने पर धनहीन होने पर शत्रुओं के जाल में फंसने पर अपने आचरण को अच्छा रखते हैं। धीरज और धर्म को नहीं त्यागते और प्राचीन काल के महापुरुषों की राह पर चलते हैं उनकी विपत्ति निश्चय ही उस तरह शीघ्र नष्ट हो जाती है जिस तरह जमीन पर फेंकी हुई गेंद शीघ्र ही ऊपर उठ जाती है |
महाराजा हरिश्चन्द्र, भगवान राम, राजा नल और पांडव पुत्रों ने धर्मात्माओं की चाल पर चलकर शीघ्र ही अपनी-अपनी विपत्तियों से छुटकारा पाया। जो मनुष्य अपनी विपत्ति में धैर्य और धर्म को छोड़ देता है उसकी विपत्ति उसे बड़े-बड़े कष्ट भोगाती है और शीघ्र नहीं जाती।
विपत्ति में धीरज और धर्म को न छोड़ो। धर्मात्माओं की चाल पर चलो। परमात्मा की दया से शीघ्र ही विपत्ति नष्ट हो जाती है। आदमी को चाहिये सुख के और दुख के समय उनको सेवन करे। दुख और सुख चाक की तरह घूमा करते हैं। फूल कभी मुरझाता है, कभी खिलता है। वृक्ष के पत्ते कभी गिरते हैं और कभी हरे-भरे होकर उनकी शोभा बढ़ जाती है। जिस तरह सूर्य और चन्द्रमा ग्रहण लगने पर भी ग्रहण मुक्त हो जाते हैं।