स्वादिष्ट भोजन की आवश्यकता क्यों?

स्वास्थ्य सुरभि



शारीरिक शक्ति तथा सौन्दर्य बनाए रखने के लिए मनुष्य को भोजन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी गाड़ी के इंजन को कोयले तथा पानी की। संसार में आंखें खोलते ही जिस वस्तु का आभास मनुष्य को हुआ वह उसकी भूख ही थी। पेट की इस ज्वाला को शान्त करने के लिए उसने अपने भोजन की खोज की। और फल-फूल अथवा मांस इत्यादि जो कुछ भी उसने पाया, खा लिया। आज भी इस दुनिया में ऐसे लोग विद्यमान हैं जो कि प्रकृति प्रवृत्त भोजन को उसके मूल रूप में ही ग्रहण करते हैं। किन्तु चने इत्यादि को कच्चा चबा जाने में वे भी असमर्थ हैं। अर्थात उन्हें भी उनको भिगोकर खानेके लिए जल की आवश्यकता पड़ती है। और उसके साथ-साथ किसी न किसी बर्तन की भी उपेक्षा होती ही है। बस जहां अन्न को जल का संयोग प्राप्त हुआ वहां रसोई की आवश्यकता स्वयं ही हो गई। और उसी आवश्यकता ने देश काल के अनुसार रसोई बनाने की क्रिया में अनेकों सुधारों की ओर आकर्षित किया। प्रतिदिन घंटों चूल्हें के आगे बैठकर लगन तथा उत्साह के साथ हमारी बहनें क्यों इतना श्रम करती हैं? उनके इस अथक परिश्रम का उद्देश्य क्या है? यह अनुभव सिद्ध बात है कि तरकारी के अभाव में रोटी का एक ग्रास भी गले से उतारना कठिन हो जाता है। छोटे से छोटा बच्चा भी बिना चीनी के दूध नहीं पी सकता। आखिर क्यों? क्या कभी सोचा है आपने इस पर?


हमारे गले में छोटी-छोटी गिलटियां सी हैं जिन्हें 'स्लेवरी ग्लैंडस' कहते हैं। भोजन करते समय इसमें से एक प्रकार का रस निकलता है जिसे 'लार' अथवा 'सलाइवा' कहा जाता है। यही लार भोजन को आसानी से निगल सकने में सहायता देता है। भोजन जितना स्वादिष्ट होगा 'स्लेवरी ग्लैंडस' उतना ही प्रभावित और उत्तेजित होकर पर्याप्त मात्रा में लार उत्पन्न करेंगे। आमाशय में पहुंचने पर वह भोजन बिना कष्ट दिये शीघ्र ही पच जाता है। किन्तु मधुरता के अभाव में लार उचित मात्रा में नहीं निकल पाता। जिससे भोजन सूखा और रसहीन प्रतीत होने लगता है। और गले से नीचे उतरने ही नहीं पाता।


प्रत्येक गृह की प्रत्येक स्वामिनी को सदैव इस ओर ध्यान देना चाहिये कि रासायनिक दृष्टिकोण से उसके रसोई घर में किन-किन पदार्थों का होना आवश्यक है। जिनके द्वारा शरीर की वृद्धि हो सके।


प्रत्येक खाद्यान्नों को  ताप देने पर ही रसोई तैयार होती है। यह ताप किस वस्तु को कितनी मात्रा में और किस प्रकार देना चाहिए इसकी जानकारी पर ही पाक कला की सार्थकता निहित है। ताप देने के साधन चाहे किसी भी प्रकार के क्यों न हो उन पर अपना नियंत्रण होना आवश्यक है। ताप कम रहने में भोजन कच्चा रह जायेगा और आमाशय में पहुंच विकृति उत्पन्न कर देगाऐसा भोजन दुर्गदन और गरिष्ठ होता है। यदि आंच तेज हो जाए और वह भोजन को जलाकर उसकी पौष्टिकता और स्वादिष्टता को नष्ट कर रसहीन बना देता है। नमक तथा मसाले इत्यादि भी भोजन में अपना विशेष महत्व रखते हैं|


Popular Posts