अनोखा तर्क


एक स्वामी जी के अनोखे आदर्श


एक नगर में एक स्वामी जी महाराज रहते थे वह बहुत पहंचु हुए साधु थे और बड़े विद्वान थे एक दिन वे एक सुनार के यहां पहुंचे और उससे बोले-


सुनार जी, आप एक अच्छी से अच्छी अंगूठी बना कर भगवान की उंगली में पहना दीजिए । यह कहकर उन्होंने अपने हाथ की उंगली सुनार के आगे फैला दी । इसके बाद वे एक मोची की दुकान पर पहुंचे और उससे बोले ।


मोची जी, आप बढ़िया से बढ़िया जूतों का एक जोड़ा तैयार कीजिए और उनको भगवान के पैरों में पहना दीजिए। यह कहकर उन्होनें अपना पैर मोची के आगे बढ़ा दिया।


इसके बाद वे आगे बढ़े और एक दर्जी की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने दर्जी से कहा।


दर्जी जी, आप एक अत्यन्त उत्तम सूट बनाइये और उसको भगवान के शरीर पर पहना दीजिए । यह कहकर उन्होनें उंगली से अपनी तरफ संकेत किया।


जब लोगों ने यह सुना तो वे नाराज हुए । उन्होंने कहा कि यह साध तो ईश्वर की निन्दा करता है । इसको पकड़कर जेल में बन्द कर दो जब लोग उनको जेलखाने ले जाने लगे तो उन्होंने सबसे प्रार्थना की कि जेल में डालने से पहले मेरी एक बात तो सुन लो लोगों ने कहा कि बताओ आपको क्या कहना है ?


स्वामी जी बोले, यह संसार किसका है ? लोगों ने उत्तर दिया, ईश्वर का स्वामी ने पूछा, तारे और सूरज किसके हैं ?


ईश्वर के।


यह खेत और उनकी फसल किसके हैं ?


ईश्वर के।


क्या आपको इस पर विश्वास है ?


हां पूरी तरह से ।


क्योंकि यही सत्य है ।


यह शरीर किसका है ?


ईश्वर का।


यह पैर किसके हैं ?


ईश्वर के।


यह उंगली किसकी है ?


ईश्वर की।


वास्तव में सारी वस्तुएं ईश्वर की ही तो हैं । लोगों ने स्वयं अपने ही तर्क से देख लिया कि स्वामी जी ने जो कुछ कहा था बिल्कल सत्य था इसलिए उनको छोड दिया गया। वे सब लोग अज्ञानी थे और उन्होंने स्वामी जी की तरह गहन विचार नहीं किया था।


निष्कर्ष : चूंकि सभी वस्तुएं ईश्वर की हैं इसलिए सभी व्यक्तियों के शरीर भी ईश्वर के हैं।


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