हम कौन सा मार्ग अपनाएं, जिससे कल्याण हो?

शंका समाधान



प्रश्न: मैं आपकी पत्रिका का ग्राहक हूँ। मैंने आपके लेख बड़े प्रेम से पढ़े हैं और मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ, क्योंकि इसमें जो सामग्री इकट्ठी की गई है वह बड़ी ठोस है और अच्छे विद्वानों के सुन्दर लेख पढ़ने को मिलते हैं| आज के समाज को देखते हुए मेरे विचार में शायद ही इसके मुकाबले का और कोई धार्मिक रसाला हो। मेरा एक प्रश्न है। उत्तर देकर कृतार्थ करें|


प्रत्येक धर्म यही समझता है कि वह सबसे अच्छा है। इसलिए हम फैसला नहीं कर पाते कि कौन-सा मार्ग अपनाएं, जिससे हमारा कल्याण हो।


उत्तरः यह संसार एक उद्यान के समान है और समस्त मत-मतान्तर विविध रंगों वाले फूल हैं। सभी विद्वानों का उद्देश्य एक ही है, उस तक पहुँचने के मार्ग अलग-अलग हैं। सत्य एक ही है और उसी की प्राप्ति में सब ज्ञानोजन लगे हए हैं| जिज्ञासुओं की वृत्तियाँ सत्, रज और तम् तीनों प्रकार की होती है। इसलिए उनकी वृत्तियों के अनुसार ही उन्हें उपदेश दिया जाता है|सनातन वैदिक धर्म सतोगुणी पुरुषों का मार्ग है| हमारे ऋषि-मुनि इसी मार्ग पर चलकर उन्नति को प्राप्त हुए हैं। महाभारत के एक प्रसंग में युधिष्ठिर ने यक्ष को कहा है कि जिस सनातन मान पर हमारे पूर्वज चलते आ रहे हैं, वही हमारे अपनाने योग्य है।


वैदिक धर्म सर्वश्रेष्ठ, सर्वप्राचीन धर्म है। वेद ईश्वरीय वाणी है। वेद ज्ञान के प्रकाश है। इसलिए यही लक्ष्य तक पहुंचाने वाला मनुष्य के लिए अपनाने योग्य एकमात्र मार्ग है। जैसे हिमालय से छोटी-छोटी नदियाँ निकलती हैं, उसी तरह इस वैदिक धर्म से अनेक मत-मतान्तर निकले हैंउचित तो ये था कि सभी वेदान्त के सिद्धान्त को सम्मख रखकर अपना प्रचार करते, परन्तु जैसे उद्दण्ड पुत्र पिता की परवाह न कर मनो मुख हुआ पिता की आज्ञा का उल्लंघन करता है, वैसे ही वर्तमान युग में प्रत्येक धर्म-मत अपनी-अपनी डुगडुगी बजाने में ही गर्व समझता है। कोई कहता है कि हमने ऐसे योग की खोज की है, जिसे अब तक कोई न पा सका, केवल हम ही अपने योग बल से सत्य को प्राप्त हुए हैं। कोई कहता है कि हमने निरंकार को प्राप्त कर लिया है और साक्षात् निरंकार के दर्शन क्षणों में ही करा सकते हैं| कोई कहता है कि हमने ही सत्यता को जाना है और सब माया जाल में थेपरन्तु विद्वानों का कहना है कि जो यह कहता है कि मैंने सब कुछ जान लिया, वह गलत हैवस्तुतः उसने कुछ भी नहीं जाना, क्योंकि आत्मा तो ज्ञान स्वरूप है। उसे ज्ञान चक्षुओं से ही देखा जा सकता है। वह इन पार्थिव नेत्रों का विषय नहीं और न ही दूसरी इन्द्रियाँ उसे पा सकती हैं|


और न ही दूसरी इन्द्रियाँ उसे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति योग आदि साधनों से नहीं हो सकतीउसके लिए तो ज्ञान मार्ग ही अपनाना पड़ता है। इसीलिए वेदों में कर्म-काण्ड, उपासना-काण्ड और फिर ज्ञान-काण्ड को अति आवश्यक घोषित किया गया है। जो मनुष्य केवल कर्म-काण्ड या उपासना-काण्ड में ही लगा हुआ है और ज्ञान मार्ग पर आने को तैयार नहीं वह अपेक्षित लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच सकता। क्योंकि और किसी भी धर्म में ज्ञान मार्ग अर्थात् आत्म-ज्ञान की प्राप्ति के लिए कोई पूर्ण दर्शन नहीं है और यह ज्ञान हमें केवल वेद-उपनिषदों से ही प्राप्त हो सकता है, इसलिए कल्याण की इच्छा करते हुए हमें इस वैदिक धर्म की ही शरण लेनी चाहिएवेदान्त किसी विशेष समाज, देश या जाति के लिए नहीं अपितु समस्त मानव-जाति के लिए है, जो सर्वत्र प्रकाश फैलाता है, आवश्यकता है तो केवल श्रद्धा, प्रेम और विश्वास की


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