"लज्जा" “संकोच"


"लज्जा"  “संकोच" एक ऐसा दैवीय गुण है जो व्यक्ति की गुणवत्ता को बढ़ाता है। घर में बड़ों के सामने कैसे उठना, बैठना कैसे चलना, खाना है, कैसा उनसे व्यवहार करना है इसमें थोड़ी सी लज्जा और संकोच आवश्यक है। अक्सर देखा है आजकल घर में दादा-दादी बैठे हैं और बेटा बोतल खोल कर अस्त-व्यस्त कपड़ों में चीख रहा है, चिल्ला रहा है- बच्चों ने लज्जा को ताक पर रख दिया है। इसी प्रकार घरों में बड़े ताश खेलते हैं जिससे बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?सोचिए?न छोटों को बड़ों की शर्म और न बड़ों को छोटों का लिहाज- इस प्रकार जब व्यवस्थाएं टूट जाती हैं तब घर बिखर जाते हैं।


 "लज्जा" केवल स्त्री का आभूषण नहीं है अपितु पुरुष का भी हैयह एक आभूषण भी है और कवच भी। यदि हर घर में इस दैवीय गुण का पालन होने लगे तो निःसन्देह स्वर्ग धरती पर ही हैचंचलता बच्चों को ही शोभा देती है इसलिए बड़ों को हमेशा सोच समझ कर, धैर्य से निर्णय ले कर करना चाहिए। अचापलम्- दूसरा दैवीय गुण है जो हर घर को स्वर्ग बना सकता है। यदि हर व्यक्ति लज्जा को अपना आभूषण बना ले और हर समय इसे एक कीमती वस्तु की तरह धारण कर ले तो निःसन्देह वह पुरुषार्थी व्यक्ति अपने एवं अन्य सभी के लिए शान्ति दूत बन सकता है।


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