वेदों का ज्ञान की श्रेष्ठ है part 1

शंका समाधान



प्रश्न : स्वामी शंकराचार्य ने बुद्ध और जैन धर्म का विरोध करके वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा की । आज बुद्ध धर्म का तो कहीं नाम-निशान भी नहीं दिखता पर जैन धर्म के लगभग पन्द्रह लाख अनुयायी विद्यमान हैं, हालंकि इनकी शिक्षा और बुद्ध धर्म की शिक्षा प्रायः मिलती जुलती है, इसका क्या कारण है ?सुना है पारसी धर्म वाले हिन्दू ही हैं, क्या यह सत्य है ? (श्री ओम प्रकाश बतरा)


उत्तर : जैन धर्म के ग्रन्थों से मालूम होता है कि जैन धर्म हिन्दू धर्म की ही एक शाखा है । इनके सभी ग्रन्थ या तो संस्कृत में है या हिन्दी से मिलते जुलते हैं । वे रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत और कई पौराणिक ग्रन्थों को कुछ हद तक मानते हैं । अहिंसा को अपना मुख्य धर्म समझते हैंइस कारण इनकी अभी तक भारतवर्ष में विद्यमानता है । क्योंकि बुद्ध मत शून्यवादि था और वे अपने सब नियम छोड़ चुके थे, बहुत से वाम मार्गी बन गए थे । इसलिए वे स्वामी शंकराचार्य के सिद्धान्त के आगे न ठहर सके और समाप्त हो गए । पर जैन धर्म वाले शान्ति पूर्वक अपना प्रचार करते रहे इनके नेताओ का तपस्वी जीवन रहा और उन्होंने हिन्दू धर्म का खण्डन नहीं किया । देव पूजा, गुरु पूजा, गुरु भक्ति, शास्त्र का पठन, संयम, तप और दान ये इनके आवश्यक कर्म समझे जाते हैं । हिन्दू विष्णु सम्प्रदाय की तरह ये मांस-शराब आदि से दूर रहते हैं । पातंजलि योगशास्त्र के अनुसार अहिंसा, सत्य, असतेय प्रसतेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रह - इन पांच व्रतों का पालन करते हैं।


ये आवागनम के दर्शन को मानते हैं । इनका उद्देश्य संसारी आत्मा के पाप पुण्य रूपी कर्म मैल को धोकर इसको संसार के जन्म-मरण आदि दु:खों से मुक्त करके स्वाधीन परमानन्द में पहुंचा देना है जिससे यह अशुद्ध आत्मा शुद्ध होकर परमात्मा में सदा के लिए स्थित हो जाती है


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