अपने लाडले को तारा बनाएं
संस्कारशाला
बच्चों पर बनाई गई फिल्म 'तारे जमीं पर' की पटकथा माता-पिता की आम धारणा पर आधारित है कि उनका बच्चा या तो कक्षा में प्रथम आए या 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करके अपना भविष्य उज्ज्वल बनाये। इस के लिए बच्चों पर इतना दबाव डालते हैं कि बच्चों की रूचि-अरूचि एवं प्राकृतिक गुणों का भी ध्यान नहीं रहतापरम पिता परमात्मा ने इस सृष्टि को गतिमान रखने के लिए हर प्राणी को विशेष क्षमता दी है, जिससे उत्तम प्रगतिशील एवं कल्याणकारी वातावरण बन सके।
इन छिपी हुई अद्भुत क्षमताओं को हम कैसे उजागर कर सकते हैं एवं माता-पिता घर का वातावरण और शिक्षक का क्या योगदान हो सकता है, यही विचारणीय विषय हैः
1. बच्चे के लिए परिवार और उसमें आपसी संबंध ही उसके लिए दर्पण हैं जिसमें वह अपने आप को और पूरे संसार को देखता है|
2. यह दर्पण उसको प्यार का प्रकाश भी दे सकता है या घृणा का अंधकार। बस इसी से बच्चे का भावी जीवन निर्मित होता है।
3. जो बच्चे सौहार्दपूर्ण वातावरण में बड़े होते हैं, उनके अन्दर सकारात्मक सोच, दृढ़ विश्वास एवं आत्म बल बढ़ता है।
4. जिन बच्चों को परिवार से अच्छे संस्कार, आचार-विचार एवं उत्साहजनक मार्गदर्शन मिलता है, वे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।
5. बच्चे की रूचि एवं क्षमता को देखकर उसका पूर्ण विकास किया जा सकता है।
6. यह कार्य पूजनीय गुरू या अध्यापक ही कर सकता है। भारतीय संस्कृति तो गुरवे नमः मानती आई है।
7. शिष्य जमीन का टुकड़ा है। उसको उपजाऊ बनाना शिक्षक का कर्तव्य है। शिक्षा का अर्थ है पढ़ना, मनन करना,शिक्षा को व्यव्हार में लाना तथा प्रचार करना। इस पवित्र लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अध्यापक के अन्दर निष्काम सेवा भाव अवश्य होना चाहिए।
माता-पिता की लापरवाही का परिणाम:
1. हमारा मन एक वाटिका है। यदि इसमें अच्छे पौधे न लगाये जायें तो झाड़ पैदा होते हैं। यदि अच्छे विचार न आयें तो बुरे विचार अपने आप पैदा हो जाते हैं|
2. बच्चा जन्म से ही माता का प्रेम तथा ममता चाहता है क्योंकि बच्चे पर मां का बहुत ही प्रभाव होता है। परन्तु जब माता बच्चे पर पूरा ध्यान नहीं देती तो बहुत दुष्परिणाम सामने आते हैं।
3. हमें बढ़ते बच्चों के मन में उठते तूफान का शान्ति के साथ सामना चाहिए। उनको समझने की आवश्यकता है | कुछ किशोर शौंक में गलती कर बैठते हैं सिर्फ एक कदम उठा था गलत शौक में , मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही| लम्हों ने की खता थी, सदियों ने सजा पाई है |
4. पहले हम गलत काम करने से घबराते थे। अब हम गलत काम अपने बच्चों के नाम करते हैं |
5. माता-पिता अनावश्यक लाड-प्यार देते हैं, खुला खर्च देते हैं, माता-पिता को क्लब, मीटिंग, तथा पार्टी से समय नहीं मिलता. दोनों काम करते हैंअधिक पाने की इच्छा तनाव और असुरक्षा बढ़ा रही है|
6. जिस माता-पिता के आपसी परिवार में अच्छे संबंध नहीं होते वहां बच्चों के अन्दर हीन भावना एवं आत्म बल की कमी होती है। वे बच्चे हिंसक एवं आक्रामक प्रवृति वाले बनते हैं| कई बार तो शर्मसारी के कारण खुल कर बात भी नहीं कर सकते।
7. जिस घर में प्राय: लड़ाई-झगड़ा होता रहता है वहां बच्चे अच्छे संबंध एवं मान-सम्मान नहीं बना सकते। उनका मन कुंठित हो जाता है।
हमारे संस्कार बच्चों को बनाते हैं।
नन्हे मुन्हें बच्चे ही साफ दिल-दिमाग तथा बिना किसी लाग-लपेट से अपना जीवन शरू करते हैं और उनके माता-पिता पर निर्भर करता है कि वह कब तक इन संस्कारों को चला पाते हैं। बच्चा दस वर्ष के बाद आजाद रहना चाहता है। तब उस बच्चे को अगर सही समय पर शिक्षा न दी जाए तो बच्चे गलत संगत में पड़ कर अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं। पहले बच्चे 6 वर्ष की आयु में स्कूल जाते थे और अब तीन वर्ष में। इससे कई प्रकार की समस्याएं हैं, और पालन पोषण में भी अंतर है। युवा पीढ़ी के जीवन में बहुत सी छोटी और बड़ी समस्याएं हैं जिन्हें सुलझा कर उनके जीवन में सहज एवं सार्थक बदलाव लाया जा सकता है। युवा वर्ग को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता का परिचय देना होगा। (घटनाएं हम तक आए, इससे अच्छा है कि हम घटनाओं तक जाएं।) देश और समाज बनाने वाले 'हवा' नहीं बांधते, वह 'जमीन' को बदलाव से (लोगों के जीवन में सार्थक परिवर्तन) भर कर उस पर बसने वाले लोगों का जीवन बनाते हैं। अमन चैन के लिए अपना जीवन निछावर कर देते हैं। 'नहीं मालूम किस-किस का लहू पानी हुआ होगा।'