प्राणायाम के नियमित अभ्यास से कोरोना वायरस प्रभावित नहीं करेगा
प्राणायाम के नियमित अभ्यास से कोरोना वायरस प्रभावित नहीं करेगा
कोरोना से भारत के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने व हल्दी , काली मिर्च, गिलोय, अदरक व तुलसी का काढ़ा बनाकर नियमित सेवन से कोरोना वायरस प्रभावित नहीं करेगा।
प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। सामान्य भाषा में जिस क्रिया से हम श्वास लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं उसे प्राणायाम कहते हैं।
प्राणायाम से मन-मस्तिष्क की सफाई की जाती है। हमारी इंद्रियों द्वारा उत्पन्न दोष प्राणायाम से दूर हो जाते हैं। कहने का मतलब यह है कि प्राणायाम करने से हमारे मन और मस्तिष्क में आने वाले बुरे विचार समाप्त हो जाते हैं और मन में शांति का अनुभव होता है और शरीर की असंख्य बीमारियो का खात्मा होता है।
सांस लेने की क्रिया के संबंध में योगशास्त्र (Ashtanga Yoga) के अनुसार 10 प्रकार की वायु बताई गई है। यह 10 प्रकार की वायु इस प्रकार है- प्राण, अपान, समान, उदान, ज्ञान, नाग, कूर्म, क्रीकल, देवदत्त और धनन्जय। अच्छे स्वास्थ्य में इन सभी प्रकार की वायु पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है।
प्राण के पाँच प्रकार हैं — अपान, व्यान, उदान, समान, प्राण। हमारा पूरा शरीर इसी प्राण के आधार पर चल रहा है। प्राण वायु का क्षेत्र कंठ नली से श्वास पटल के मध्य है, इसको यह प्राणवायु कंट्रोल करता है ।
अपान — नाभि के नीचे जितने अंग हैं, इनकी कार्य प्रणाली को अपानवायु नियंत्रित करता है। जो कुछ हम खाते हैं उसको पचाना और जो व्यर्थ है उसे मल — मूत्र के रूप में बाहर निकलना; यह कार्य अपानवायु से संचालित होते हैं। अपान हमारे पाचनक्रिया को कंट्रोल करती है, जैसे गालब्लेडर, लिवर, छोटी आंत, बड़ी आंत, ये सब इसी क्षेत्र में आते हैं।
उदान — कंठ के साथ जुड़े जितने भी अंग हैं; आँख, कान, नाक, जीभ, बोलना, स्वाद लेना, ये ज्ञानेन्द्रियाँ जो हैं, इनके सारे कार्य उदानवायु से होते हैं। जब तक उदानवायु है, तब तक आँखें देखेंगी, कान सुनेंगे, जीभ बोलेगी, नाक सूंघेगा। उदानवायु के द्वारा हमारी जो कर्मेन्द्रियाँ हाथ — पैर और नाभि के ऊपर के सारे अंग, जैसे हृदय की धड़कन, हृदय की धमनियां आती हैं, फेंफडे यह सब उदान की शक्ति से कार्य करते हैं।
समान- यह हमारे शरीर के मध्य भाग में होती हैं। अपान और उदान की जो बैलेंसिंग है, यह समान वायु के द्वारा होती है।
व्यान — यह प्राण हमारे पूरे शरीर में है। इसको हम सर्वव्यापी भी बोलते हैं। अर्थात जो पूरे शरीर में फैला हुआ है।
इन पंचप्राणों के भी पाँच उपप्राण हैं — जैसे हिचकी, आंखों का झपकाना, यह भी प्राण से हो रहा है।
अब प्राणायाम का सीधा सम्बन्ध इन्ही पंचप्राणों (prana) से है। पूरे शरीर का कार्य इन पंचप्राणों से हो रहा है और इन पंचप्राणों पर सीधा प्रभाव देता है- प्राणायाम।
नाक से बाहरी वायु का भीतर प्रवेश करना श्वास कहलाता है और भीतर की वायु का बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। इन दोनों के नियंत्रण का नाम प्राणायाम है। प्राणायाम में हम पहले श्वास को अंदर खींचते हैं, जिसे पूरक (puraka) कहते हैं। पूरक मतलब फेफड़ों में साँस को भरना। श्वास लेने के बाद कुछ देर के लिए श्वास को फेफड़ों में ही रोका जाता है, जिसे कुंभक (kumbhaka) कहते हैं। इसके बाद जब श्वास को बाहर छोड़ा जाता है तो उसे रेचक (rechaka) कहते हैं। इस तरह प्राणायाम की सामान्य विधि पूर्ण होती है। भीतर की श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखना बाह्यकुंभक कहलाता है।
कई तरह से होते हैं प्राणायाम के लाभ
– योग में प्राणायाम क्रिया सिद्ध होने पर पाप और अज्ञानता का नाश होता है।
– प्राणायाम की सिद्धि से मन स्थिर होकर योग के लिए समर्थ और सुपात्र हो जाता है।
-प्राणायाम के माध्यम से ही हम अष्टांग योग की प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और अंत में समाधि की अवस्था तक पहुंचते हैं।
– प्राणायाम से हमारे शरीर का संपूर्ण विकास होता है। फेफड़ों में अधिक मात्रा में शुद्ध हवा जाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
-प्राणायाम से हमारा जबरदस्त मानसिक विकास होता है। प्राणायाम करते हुए हम मन को एकाग्र करते हैं। इससे मन हमारे नियंत्रण में आ जाता है।
– प्राणायाम से शरीर की सभी बीमारियों में 9 महीने में निश्चित आराम मिलने लगता हैं।
– सुबह-सुबह थोड़ा सा व्यायाम या योगासन करने से हमारा पूरा दिन स्फूर्ति और
ताजगीभरा बना रहता है। यदि आपको दिनभर अत्यधिक मानसिक तनाव झेलना पड़ता है तो यह क्रिया करें, दिनभर चुस्त रहेंगे। इस क्रिया को करने वाले व्यक्ति से फेफड़े और सांस से संबंधित बीमारियां सदैव दूर रहेंगी।
– हर समय अपने अंदर सुखद पाजीटिव एनर्जी (positive energy) महसूस होने लगती है।
सावधानियाँ –
अगर आप कोई प्राणायाम या एक्सरसाइज करते है तो नीचे लिखे कुछ बातो पर जरूर ध्यान दे, नहीं तो फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है-
– अगर आपने कोई लिक्विड पिया है चाहे वह एक कप चाय ही क्यों ना हो तो कम से कम 1 से डेढ़ घंटे बाद प्राणायाम करे और अगर आपने कोई सॉलिड (ठोस) सामान खाया हो तो कम से कम 3 से 4 घंटे बाद प्राणायाम करे।
– अगर पेट में बहुत गैस हो या हर्निया या अपेण्डिस्क का दर्द हो या आपने 6 महीने के अंदर पेट या हार्ट का ऑपरेशन करवाया हो तो प्राणायाम न करे।
-प्राणायाम व योग को करने के कम से कम 7 मिनट बाद ही कोई हार्ड एक्सरसाइज (जैसे दौड़ना, जिम की कसरतें आदि) करनी चाहिए !
– प्राणायाम करते समय रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी रखे और चेहरे को ठीक सामने रखे (कुछ लोग चेहरे को सामने करने के चक्कर में या तो चेहरे को ऊपर उठा देते है या जमींन की तरफ झुका देते है जो की गलत है )
– कोई ऊनी कम्बल या सूती चादर बिछाकर ही प्राणायाम करे (नंगी जमींन पर बैठ कर प्राणायाम ना करे। और प्राणायाम के 5 मिनट बाद ही जमींन पर पैर रखे। ये बार — बार देखा गया है कि हजारो लोग ऊपर दी गयी मामूली सावधानियों का पालन नहीं करते और प्राणायाम से उनको फायदे के जगह नुकसान पहुचता है और अंत में वे प्राणायाम को कोसते फिरते है कि उनको प्राणायाम से फायदा नहीं बल्कि नुकसान हुआ। जबकि प्राणायाम एक बहुत दिव्य क्रिया है और हठ योग के अनुसार प्राणायाम करने से भी पाप जलते है जैसे की भगवान का नाम जपने से इसलिए अगर आप बहुत कमजोर नहीं है तो आप प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट कपाल भाति और 10 मिनट अनुलोम विलोम प्राणायाम जरूर करे। प्राणायाम का समय धीरे धीरे बढ़ाना चाहिए ना कि पहले ही दिन से 15 मिनट प्राणायाम शुरू कर देना चाहिए अन्यथा गर्दन की नली में खिचाव या कोई अन्य समस्या पैदा होने का डर रहता है।
– सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
-प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
– प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
– हर साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
– जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
प्राणायाम के प्रकार और उनकी विधिया
कपालभाति प्राणायाम करने की विधि
– समतल स्थान कपड़ा बिछाकर रीढ़ की हडडी सीधी करके आराम से बैठ जाएं। बैठने के बाद पेट को ढीला छोड़ दें। अब तेजी से बार — बार नाक से सांस बाहर निकालें, पर पेट को भीतर की ओर खीचने पर ध्यान ना दे क्योकि पेट अपने आप अंदर पिचकेगा। आप पूरा ध्यान केवल सांस को बार — बार बाहर निकालने पर दे। जो लोग नेत्र रोग से पीडि़त हैं, कान से पीप आता हो, ब्लड प्रेशर की समस्या हो, तो वे इस प्राणायाम को किसी योग प्रशिक्षक (Yoga Training) से सलाह लेकर ही करें |
अनुलोम-विलोम (नाड़ी शोधन) प्राणायाम की विधि
– बहुत कम लोगों को पता है कि नाड़ी शोधन कोई प्राणायाम नहीं, बल्कि एक पूरी प्रक्रिया है जिसकी शुरुवात अनुलोम विलोम प्राणायाम से होती है ! नाड़ी शोधन प्रक्रिया में एक बहुत साइंटिफिक तरीके से यह भावना करनी होती है कि शरीर के अंदर प्रवेश करने वाली वायु शरीर की विभिन्न नाड़ियों का शोधन कर रही है, अतः यह प्रक्रिया बिना गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन के संभव नहीं होती है !
इसलिए यहाँ हम सिर्फ अनुलोम विलोम प्राणायाम का ही वर्णन कर रहें हैं !
अनुलोम-विलोम करने के लिए पहले सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें।फिर अपना दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के के दाएं छिद्र को बंद कर लें और बाएं छिद्र से भीतर की ओर सांस खीचें। अब बाएं छिद्र को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद करें। दाएं छिद्र से अंगूठा हटा दें और सांस छोड़ें। अब इसी प्रक्रिया को बाएं छिद्र के साथ दोहराएं। यही क्रिया कम से कम 10 बार, उलट — पलट कर करें। इसे प्रतिदिन 7–10 मिनट तक करने की आदत डालें।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम के लाभ
मानव शरीर में स्थित 72 हज़ार नाड़ियों को हर तरीके से शुद्ध करने में बहुत अहम भूमिका निभाता है जिससे शरीर की असंख्य बीमारियों का नाश अपने आप धीरे धीरे होने लगता है।
– हृदय प्रदेश में ईश्वरीय प्रकाश (divine light or God light) का उदय करता है जिसे कुछ वर्ष बाद इसका अभ्यासी (yoga practitioner feel or observe) स्पष्ट महसूस करने लगता है !
सूर्यभेदी प्राणायम करने की विधि
– किसी भी सुविधाजनक आसन में बैठ जाएं। बायीं नाक बंद करके दाई नाक से सास खींचे। जब सांस पूरी भर जाए, तब कुंभक करें। इस कुंभक को उतना ही देर तक करना चाहिए, जिससे किसी भी अंग पर दबाव न पड़े। फिर बायीं नाक से सांस धीरे धीरे निकाल दे।यही क्रिया कम से कम 10 बार करें।
सूर्यभेदन प्राणायम के लाभ
– भगवान् भास्कर की रहस्यमय शक्तियों का शरीर पोषण पाता है जिससे शरीर का बहुत भला होता है !
– इस प्राणायाम से मस्तिष्क शुद्ध होता है। वातदोष का नाश होता है। साथ ही कृमि दोष नष्ट होते हैं। यह सूर्य भेदन कुंभक बार-बार करना चाहिए पर गर्मी में कम करना चाहिए । इससे सभी उदर-विकार दूर होते हैं और जठराग्नि बढ़ती है।
त्वचा में चमक और कसावट पैदा होती है !
चंद्रभेदी प्राणायाम की विधि
– किसी भी शांत एवं स्वच्छ वातावरण वाले स्थान पर सुखासन में बैठ जाएं। अब नाक के बाएं छिद्र से सांस अंदर खींचें। पूरक अथवा सांस धीरे-धीरे गहराई से लें। अब नाक के दोनों छिद्रों को बंद करें। अब सांस को रोक लें (कुंभक करें) फिर थोड़ी देर बाद नाक के दाएं छिद्र से सांस छोड़ दें। यही क्रिया कम से कम 10 बार करें।
(एक ही दिन में सूर्य भेदन प्राणायाम और चंद्र भेदन प्राणायाम न करें)
चंद्र भेदन प्राणायाम के लाभ
– मन के स्वामी, भगवान् शिव के सिर पर विराजने वाले चन्द्र भगवान् की रहस्यमयी जीवनी शक्तियों का शरीर में संचार होता है !
– शरीर में शीतलता आती है और मन प्रसन्न रहता है। पित्त रोग में फायदा होता है। यह प्राणायाम मन को शांत करता है और क्रोध पर नियंत्रण लगाता है। अत्यधिक कार्य होने पर भी मानसिक तनाव महसूस नहीं होता। दिमाग तेजी से कार्य करने लगता है। हाई ब्लड प्रेशर वालों को इस प्राणायाम से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
भस्त्रिका प्राणायाम की विधि
समतल और हवादार स्थान पर किसी भी आसन जैसे पदमासन या सुखापन में बैठकर इस क्रिया को किया जाता है। दोनों हाथ को दोनों घुटनों पर रखें। अब नाक के दोनों छिद्र से तेजी से गहरी सांस लें। फिर सांस को बिना रोकें, बाहर तेजी से छोड़ दें।
इस तरह कई बार तेज गति से सांस लें और फिर उसी तेज गति से सांस छोड़ते हुए इस
क्रिया को करें। इस क्रिया में पहले कम और बाद में धीरे-धीरे इसकी संख्या को बढ़ाएं (यदि किसी व्यक्ति को दमा या सांस संबंधी कोई बीमारी हो तो वह अपने डॉक्टर से परामर्श कर ही इस क्रिया को करें)
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ (Benefits of bhastrika pranayam)
– कुण्डलिनी महा शक्ति के जागरण में इस शक्ति का बहुत महत्वपूर्ण रोल होता है !
– यह पूरी शरीर की बहुत अच्छी कसरत करवा देता है !
– इस क्रिया के अभ्यास से फेफड़े में स्वच्छ वायु भरने से फेफड़े स्वस्थ्य और रोग दूर होते हैं। यह आमाशय तथा पाचक अंग को स्वस्थ्य रखता है। इससे पाचन शक्ति और वायु में वृद्धि होती है तथा शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। इस क्रिया से सांस संबंधी कई बीमारियां दूर ही रहती हैं।
यह सर्व रोग नाश की क्षमता रखता है !
बाह्य प्राणायाम (महाबंध या त्रिबंध) की विधि
– सुखासन या पद्मासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोककर रखने के बाद तीन बन्ध एक साथ लगाने पड़ते है ! ये तीनो बंध हैं — जालंधर बन्ध (गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटा कर रखना है), उड़ड्यान बन्ध (पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है), मूल बन्ध (मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है) ! इन तीनों बंध की विस्तृत विधि और लाभ नीचे दिए गएँ हैं !
बाह्य प्राणायाम (महा बंध या त्रिबंध) के लाभ –
– कुण्डलिनी महा शक्ति जगाने के लिए यह प्राणायाम बेजोड़ है ! इससे एक साथ मूलाधार चक्र, नाभि स्थित मणिपूरक चक्र व कंठ स्थित विशुद्ध चक्र जागृत होता है जिससे कई रहस्यमय सिद्धियाँ मिलती हैं और साथ ही शरीर के सभी रोगों का नाश होता है !
– तात्कालिक रूप से कब्ज, ऐसिडिटी, गैस आदि जैसी पेट की सभी समस्याओं से आराम मिलता है। हर्निया ठीक होता है। धातु, पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिटती हैं। मन की एकाग्रता बढ़ती है। संतान हीनता से छुटकारा मिलने में भी सहायक है।
कुंभक प्राणायाम करने की विधि
– इसको करने के लिए आप पद्मासन अवस्था में बैठ जायें ! आपका सिर, आपकी कमर व आपकी गर्दन सीधी होनी चाहिए !
अब आप अपनी नाक के दोनों छिद्रों से सांस को अंदर लें (इसे पूरक कहते हैं) ! अब आप अपनी नाक के दोनों छिद्रों बंद करके अपनी सांस को अंदर रोकें रहें (इसे अभ्यंतर कुंभक कहा जाता है) इसके बाद आप अपनी नाक के दोनों छिद्रों को छोड़ दे और सांस को धीर धीरे छोड़ें (इसे रेचक कहा जाता है) !
-जब तक सांस शरीर के अंदर रहे तब तक ईश्वर के अपने मनपसन्द रूप का ध्यान करें !
कुंभक प्राणायाम के लाभ
– इस प्राणायाम को सर्वश्रेष्ठ प्राणायाम माना जाता है ! इस प्राणायाम को कुछ योगाचार्य प्लाविनी प्राणायाम भी कहते है ! जब तक योगी कुम्भक की अवस्था में रहता है तब तक उस पर कोई भी बीमारी, मृत्यु आदि असर नहीं कर सकते !
– इस प्राणायाम को करने से अध्यात्मिक उन्नति बहुत तेज होती है ! व्यक्ति को चमत्कारी सिद्धियाँ मिलती हैं ! शरीर के सभी रोगों का नाश होता है !
-इस प्राणायाम करने वाले को धीरे धीरे अपने कुम्भक का समय बढ़ाते रहना चाहिए क्योंकि कुम्भक के समय एक क्षण के लिए भी किया गया ईश्वर का ध्यान करोड़ गुना फल देने वाला होता है !