सम्पूर्ण शरीर सार
मस्तिष्क के कोष पांच प्रकाश के होते हैं और पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं। मूलरूप से ये सब मूल तत्व हमारे शरीर में बराबर मात्रा में रहने चाहिए। जब इनमें थोड़ी-सी भी गड़बड़ी होती है या किसी एक तत्व में त्रुटि आ जाने या वृद्धि हो जाने से दूसरे तत्वों में गड़बड़ी आती है, जिससे शरीर में रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यहाँ हम आप को सम्पूर्ण शारीर के सार को इन पञ्च तत्वों के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करेंगे |
पृथ्वी:- सम्पूर्ण शरीर साँस से चलता है जिसको हमने नासिका से जोड़ा है। कहावत है कि "कब्ज सारे रोग की जड़ है।" सम्पूर्ण शरीर में अगर नासिका नहीं चलेगी तो सम्पूर्ण शरीर में बिमारियाँ रहेंगी। सम्पूर्ण तंत्र नहीं चलेगा| यही हमारा अनमय कोश है और हमारे जो गैस बनती हैं जिसे हम अपान वायु कहते हैं। इसमें हमारी पिंगला नाड़ि जो गुदाशय से जुड़ी हुई है यही हमारे पाचन तंत्र से जुड़ी हुई है और हमारे दाई नाशिका से जुड़ी है। गुदाशय से हमारा मूलाधार चक्र जुड़ा हुआ है और इसका बीज मंत्र लं है। सारे शरीर के जो जड़ तत्व हैं वो यही हैं।
जल:- हमारे सम्पूर्ण शरीर में जल होता है जिसमें ऑक्सीजन होती है जो हमारे सम्पूर्ण शरीर में खून को सप्लाई करता है। जल ही जीवन है। शरीर में जल नहीं होगा तो न ही खून होगा न लचीलापन होगा। जब हमारा शरीर अस्वस्थ गंभीर बिमारियों से जूझने लगता है तो मृत्यु की ओर जाने लगता है तब हमारी जिव्हा का स्वाद और अकड़न शुरु होने लगती है अंत में जिव्हा ऐंठ जाती है। जल के अन्दर जो Toxin होते हैं वह मूत्र के द्वारा निकल जाते हैं और मूत्राशय में ही Sexual Point होते हैं जो कि हमें आनंदमय कोश की ओर ले जाते हैं यही हमारा आनंदमय कोश है। यहीं से हमें जोश आता है और यहीं से हमें खुशी मिलती है। संपूर्ण शरीर में Blood water जिसे हम व्यान वायु कहते हैं, नहीं दौड़ेगा तो पूरा शरीर खराब होने लगेगा और नस नाड़ियाँ खराब होने लगेंगी जो कि हमें मृत्यु की ओर ले जायेंगी | यही हमारा स्वाधिष्ठान चक्र है| जिस का बीज मंत्र वं है।
अग्नि:- पंचतत्व में हमारा अग्नि तत्व है। हमारे संपूर्ण शरीर में अग्नि होती है जिससे हमारा शरीर गर्म रहता है। अगर अग्नि नहीं होगी तो हमारा शरीर मृत्यु के समान कहलाएगा यही हमारी ऊर्जा है। हमारे शरीर में 80वां भाग ऊर्जा है जो आँखों से निकलती है। यह हमारी ज्ञान इन्द्रियाँ हैं। पैर जो कि हमारी कर्म इंद्री है जो हमेशा गर्म होनी चाहिए|
एक कहावत भी है "पैर गर्म पेट नरम सर ठण्डा तो डॉक्टर को मारो डण्डा।" इसलिए जिसके पैर हमेशा गर्म रहते हैं और सिर हमेशा ठंडा रहता है तो वह बिमारियों से बचा रहता है। यहीं हमारा प्राणमय कोश भी है, जो कि नाभि स्थान में उपस्थित है, यही हमारी समान वायु कहलाती है। यही हमारी सुषुम्ना नाड़ी उपस्थित है। इसका चक्र ज्ञान मणिपुर चक्र है और इसका बीज मंत्र रं है।
वायुः- पंचतत्व में वायु का स्थान बहुत बड़ा है। वायु है तो शरीर है अन्यथा इस संसार में कोई भी जीव पेड़-पौधे पनप नहीं सकते। हमारे संपूर्ण शरीर में वायु का प्रवाह होता रहता है जो कि हमारी त्वचा से हवा पसीने के द्वारा अंदर-बाहर जाती हैजिससे पूरे शरीर की त्वचा में नमी बनी रहती है। हाथ जो कि हमारी कर्म इन्द्री है वह हमारे शरीर के Lungs हैं जो धोकनी के रूप में काम कराती है। जिससे Lungs खुलता और बंद होता है|
कहावत है कि 'एक मन 25 चीजों को काब करता है जैसे कि 5 ज्ञान इन्द्री, 5 कर्म इन्द्री, 5 पंच कोश 5 प्राणमय कोश, 5 पंचतत्व वायु एक मन काबू करता है और मन को प्राण वायु काबू करता है।' यही हमारा मनमय कोश और प्राण वायु काबू करता है।' यही हमारा मनमय कोश और प्राण वायु कोश है। यहाँ हमारी इड़ा नाडि है जो कि हमारी बायीं नासिका से आती जाती है। यह हमारे हृदय स्थान से जुड़ते हुए गुदाशय से जाती है। अनाहत चक्र विज्ञान में हमारा इसी से जुड़ता है और इसका बीज मंत्र यं है।
आकाश:- पंचतत्व में आकाश तत्व हमारे शरीर का ताज है | हमारी जो ज्ञान इंद्री है वो कण है वह हमारे कानों के द्वारा ही बुद्धि में विराजमान होती है | यही हमें सोचने, समझने की शक्ति देती है। इसके साथ-साथ हमारा कण्ठ जहाँ पर सरस्वती विराजमान होती है और हमें ज्ञान प्राप्त कराती है। यही हमारा ज्ञानमय कोश है। यही हमारी उदान वायु स्थित है शब्दों का ज्ञान हमें यहीं से प्राप्त होता है। यही हमारा विशुद्धि चक्र भी है और इसका बीज मंत्र हं है। अगर यह सारी चीजें ठीक होती हैं तो हमारा आज्ञा चक्र, सहस्रार विसर्ग परम शिव स्वयं ही जाग्रत हो जाता है। यही परम सत्य है। हरि ओम्