एक तेली और उसका तोता

नीति कथाएँ


    तर्क की गलत विधि


      (एक तेली और उसका तोता)



भारत के किसी गांव में एक तेली  रहता था। इसके पास एक सुन्दर तोता था| एक दिन तेली किसी काम से बाहर गया| उस का नौकर कहीं गया था| दुकान में केवल तोता था। तेली की अनुपस्थिति में वहां एक बिल्ली आई। बिल्ली को देख कर तोता डर गया| वह पिंजरे में फड़फड़ाने लगा और उछलकूद करने लगा।


 इस कारण से उसका पिंजड़ा जो दीवार पर एक खूटी से टंगा हुआ था, नीचे गिर पड़ा। नीचे एक बर्तन था जिसमें मूल्यवान तेल भरा हुआ था। पिंजड़ा उसी बर्तन पर गिरा। बर्तन, जो मिट्टी का था, फूट गया और सारा तेल बह गया।


थोड़ी देर के बाद तेली लौट कर आया और तेल की हानि देखकर बहुत गुस्सा हुआ| वह तोते से अप्रसन्न हो गया। उसने सोचा कि यह तोते की ही शरारत है। वह अपने क्रोध को रोक नहीं सका क्योंकि उसका पचास रूपये का तेल बह गया था।


तेली ने पिंजड़े का दरवाजा खोला और हाथ डाल कर तोते के सिर के सारे पंख नोंच डाले| तोता गंजा हो गया। उसके सिर पर कलगी नहीं रह गई थी। सिर से खून बहने लगा। दो सप्ताह तक तोता बिल्कुल चुप रहा| बाद में तेली को अपने किए पर पछतावा हुआ। पन्द्रह दिन के बाद तेली की दुकान पर एक ग्राहक आया। वह टोपी नहीं पहने था। उसका सिर भी गंजा था|


उस ग्राहक को देखकर तोता खूब हंसा। अपने जैसा सिर वाला आदमी देखकर वह बहुत खुश था। तेली ने तोते से पूछा, ऐ तोते, तू किस बात पर इतना खुश है जिस पर तू हंस रहा है?"


तोता बोला, भगवान को धन्यवाद, मैं ही अकेले तेली का नौकर नहीं हूं। यह आदमी भी किसी तेली का नौकर जान पड़ता है। नहीं तो इसका सिर कैसे गंजा हो गया?"


इसी प्रकार का तर्क अन्य बहुत से लोग भी करते हैं। वे सोचते हैं कि जो काम वे करते हैं उन सब में कोई न कोई उद्देश्य होता है|


वह सभी काम किसी न किसी स्वार्थ या इच्छा को पूरा करने के लिए करते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर ने भी सृष्टि की रचना किसी न किसी मतलब से ही की, या किसी प्रकार के स्वार्थ या इच्छा को पूरी करने के लिए ही की होगी। वे समझते हैं कि ईश्वर ने पहले से योजना बनाकर और सोच कर सृष्टि को बनाया है। यह तर्क करने की गलत विधि है।



निष्कर्षःचूंकि लोग प्रायः सभी काम किसी स्वार्थ या इच्छा को पूरा करने के लिए करते हैं इसलिए वे सृष्टि रचना में भी ईश्वर का कोई स्वार्थ समझते हैं। यह तर्क करने की गलत विधि है।



Popular Posts