साधना के बिना सफलता कैसी
अगर ये पूछा जाए कि दुनिया में से अधिक जरूरी और सबसे ज्यादा कठिन काम कौन सा है तो नि:सन्देह उसका ठीक-ठीक उत्तर यही है कि मनुष्य का अपने मन और इन्द्रियों पर कंट्रोल। गीता में भी अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण जी से बार-बार यही प्रार्थना की थी कि, हे प्रभु! ये मन बड़ा चंचल है| इसको काबू में कैसे किया जाए? भगवान कृष्ण ने इसका उपाय इन्द्रिय दमन और मन व बुद्धि की साधना ही बताया है।
अवतारों, देवी-देवताओं, गुरुओं व ऋषि-मुनियों के तप, तपस्या, व्रत आदि का मुख्य उद्देश्य मन की - साधना ही तो था। मनुष्य तो एक चेतन प्राणी है। उसके लिए तो मन की साधना आवश्यक है ही, अनगिनत जड़-वस्तुयें भी जब तक उनकी साधना अर्थात उन्हें शुद्ध नहीं कर लेते। उनकी कोई खास जरूरत या कर्द नहीं होती। उदाहरण के लिए जब सोना, लोहा, मिट्टी का तेल आदि चीजें जमीन से निकलती हैं, तो किसी मतलब की नहीं होतीं। न ही उनको किसी प्रयोग में लाया जा सकता है। लेकिन जैसे ही उन्हें शुद्ध किया जाता है, अर्थात उनकी साधना कर दी जाती है तो इन चीजों में इतना निखार, सुन्दरता और चमक दमक आ जाती है कि हर एक आदमी उन्हें प्राप्त करके खुश होता है। मिलावट से साफ करते-करते कच्ची धातु से सोना और लोहा व मिट्टी का तेल जैसी कीमती काम आने वाली वस्तुयें प्राप्त होती हैं। उनकी और अधिक साधना की जाए तो सोने से बढ़िया वस्तु कुन्दन और लोहे से फौलाद व स्टील व मिट्टी के तेल से पैट्रोलियम आदि, कीमती वस्तुयें तैयार होती हैं। सोचने की बात है कि जब ये जड़ चीजें साधना से बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त कर सकती हैं तो इंसान तो सबसे श्रेष्ठ है।
ये अपने आप की साधना करके क्यों आश्चर्यजनक उन्नति नहीं कर सकता?
गांधी जी अपने मन और बुद्धि की साधना के लिए काफी लम्बे-लम्बे व्रत रखते रहें। हमारे अन्दर आत्म विश्वास (SELF CONFIDENCE) इस वक्त तक पैदा नहीं हो सकता। जब तक कि अपने आप की सब विषय, वासनाओं, कामनाओं, इच्छाओं और सांसारिक पदार्थों के लालच से दूर रहने की साधना नहीं कर लेता, आत्म गौरव की प्राप्ति नहीं हो सकती। न ही वो सही अर्थ में पूजनीय ईश्वर की तरफ ध्यान देता है। दिखाने के लिए भले ही वो तीर्थ यात्रा करता फिरे, या पूजा-पाठ में वक्त लगाता रहे। लेकिन जब ये रुकावटें मनुष्य अपने रास्ते से हटा लेता है तो सफलता ही सफलता है। फिर तो परमात्मा उसे उसकी मर्जी द्वारा गुणों से भरपूर करता-
खुदी को कर बुलन्द इतना
कि हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे
बता तेरी रजा क्या है
लेकिन इन्सानी मन की साधना एकदम संभव नहीं| मन ऐसा बेलगाम घोड़ा है कि उसे बार-बार और लगातार व कदम-कदम पर गलत रास्ते से रोकना और ठीक रास्ते पर चलाना पड़ता है, मन को समझाने के यही उपाय साधना कहलाते हैं। असली साधु वही है जिसने अपने मन की साधना पूर्ण रूप से कर ली है। और जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंधकार के बड़े से बडे तुफानों का मुकाबला चट्टान की तरह कर सकता है। जिसके मन को दुनिया के बड़े से बड़े पदार्थ और काम-वासनायें कदापि विचलित नहीं कर सकतीं। वही साधु है। न कि गेरुए पहन लेने से कोई भी साधु बन सकता है। शायद एक गृहस्थी ज्यादा सफल साधु बन सकता है। जिसने पूर्ण रूप से अपने मन की साधना कर ली है। जो गृहस्थी अपने रोजाना के काम-काज में किसी के हक पर अपना अधिकार नहीं जमाता और अपनी काम-काज को अच्छी ईमानदारी से पूरा कर देता है। वही मनुष्य हमेशा इंसानों की सेवा और तरक्की में सहायक होना अपनी ज़िन्दगी का आदर्श समझता है। मगर वे गृहस्थी होते हुए भी उच्च कोटि का साधु है। इबादत से बरतर है उलफत का दर्जा।
फरिश्ते से बेहतर है इंसान हो।। इस पृथ्वी पर शायद इंसान का जन्म ही इसलिए हआ था कि जहां चौरासी लाख प्राणियों में से किसी और को ये स्थान प्राप्त नहीं था, क्योंकि इसके ही दिल में ईश्वर की हस्ती का अहसास या दूसरे प्राणियों के मानसिक भाव, हमदर्दी का दर्जा मौजूद होता है।
लेकिन कितने इंसान हैं जो मनुष्य जन्म को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ समझकर इसको इस हकीकी रास्ते पर चलाते हैं? जो राह हमें अवतारों, ऋषि-मुनियों और गुरुओं ने बताई। कई लोग इस राह पर चल तो पड़ते हैं, लेकिन थोड़े अभ्यास के बाद मार्ग से भटक जाते हैं|