वृंदावन की ब्रज भूमि सबसे अधिक पुण्यकारी (चतुर्मास का महत्त्व)

https://theomfoundation.orgचतुर्मास का महत्व


वृंदावन की ब्रज भूमि सबसे अधिक पुण्यकारी


साक्षात्कार 


कथा है कि शंखचूड़ नाम के राक्षस का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने उसके साथ भयंकर युद्ध किया और अंत में उस का अंत भी किया। युद्ध के पश्चात भगवान श्रावण मास की देवशयनी एकादशी के दिन विश्राम करने चले गए और चार माह बाद, देवउठनी एकादशी के दिन निद्रा से उठे। यही चतुर्मास का काल भी है। परमपूज्य ब्रह्मलीन  स्वामी प्रज्ञानंद जी महाराज भी  चतुर्मासी तपस्या के लिए अज्ञात स्थान पर जाते थे ।सन २०१८ में  मैंने उनसे इस चतुर्मास के महत्व, कारण एवं इस चार माह में गृहस्थों को क्या करना चाहिए, आदि जिज्ञासायों का उत्तर जानना चाहा। पेश है उनसे साक्षात्कार  का सार-


जिज्ञासा- आप ने अपना सारा जीवन परोपकार एवं परमिता परमेश्वर के ध्यान और धर्म प्रचार में लगा  दिया। आज जब भैययू जी जैसे आध्यात्मिक गुरु आत्महत्या जैसा पाप करते हैं और अध्यात्म को गहरी चोट पहुंचाते हैं। स्वामी जी इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे।


उत्तर- आज अखाड़ा परिषद के नरेन्द्र गिरी जी ने कहा है कि जो भी गृहस्थ हैं वे संन्यासी नहीं हो सकते । भैययु  जी की इस दुखद मौत का कारण उनके दो विवाह से उत्पत्न हुए विवाद ही हैं। इसलिए गृहस्थ को संन्यासी होने का ढोंग नहीं करना चाहिए। हमारे शास्त्रों ने वानप्रस्थ आश्रम को सुन्दर से चार अंगों में विभाजित किया है- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। आप यदि इन के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो अवश्य ही पाप के भागीदार बनते हैं। कहते हैं-


उधरे अंत न होए निभाऊ


काल नेमी जिमी रावण राहू


अर्थात जब तक छिपा है तब तक ठीक है, उजागर होते ही सब समाप्त है।


जिज्ञासा- स्वामी जी अज्ञातवास के सांसारिक मायने क्या हैं?


उत्तर- अज्ञातवास चतुर्मास की परंपरा है। रश्मि जी चतुर्मास की कथा इस प्रकार है। शंखचूड़ नाम से एक राक्षस था जिसने हाहाकार मचा रखा था। उसका वध करने के लिए भगवान विष्णु ने उसके साथ भयंकर युद्ध किया और अंत में उस का अंत भी किया। युद्ध के पश्चात भगवान श्रावण मास की देवशयनी एकादशी के दिन विश्राम करने चले गए और चाह माह बाद, देवउठनी एकादशी के दिन निद्रा से उठे। इस चतुर्मास में सांसारिक जीवन में शुभ कार्य जैसे शादी-ब्याह, घर-गाड़ी खरीदना वर्जित है। इस अवधि में अधिक से अधिक पूजा-अर्चना करनी चाहिए। सतयुग से युगों तक चली आ रही इस परंपरा को ऋषि, मुनि संभाले बैठे हैं।


जिज्ञासा- स्वामी जी क्या आप भी चतुर्मास का पालन करते हैं? और इसके नियम क्या हैं? उत्तर - रश्मि जी मैं पिछले दो बार से इस पुण्य चतुर्मास का पालन कर रहा हूं। यह एक प्रकार से अज्ञातवास हो जाता है। मेरा पहला अज्ञातवास जगन्नाथ पुरी में, दूसरा वृन्दावन में और इस वर्ष तीसरा रामेश्वरम और चौथा द्वारिका में करेंगे। वृन्दावन में अज्ञातवास करना अर्थात सभी पुण्यों को अर्जित करना। वृन्दावन की बड़ी सुन्दर कथा है। जब प्रभु ने प्रयागराज को सभी तीर्थों का राजा घोषित किया तब उन्होंने खुशी में सभी तीर्थों को आमन्त्रण भेजा। सभी तीर्थ प्रयाग राज आये लेकिन वृन्दावन नहीं आए। ये देख कर प्रयागराज क्रोधित हुए और प्रभु से आलोचना करने लगे। तब नारायण ने उन से कहा कि वृन्दावन तो मेरा अपना धाम है प्रयागराज उसस सब को और तुम्हारी तुलना क्यों? तब प्रयागराज को अपनी गलती का एहसास हुआ और वृन्दावन को प्रणाम किया और उसे श्रेष्ठतम तीर्थ का दर्जा दिया। इसलिए वृन्दावन की ब्रज भूमि सब से अधिक पुण्यकारी है और वहां पर अज्ञातवास करने से मैं सभी कर्म । बन्धनों से छूट गया हूं।


अखाड़ा अज्ञातवास के नियम कड़े हैं। इसमें भूमि पर शयन करना, पलास के पत्तों पर भोजन करना, दिन में केवल एक बार भोजन करना, बाहर की दुनिया से कम से कम बातचीत रखना, अपना सारा समय यज्ञ, साधना और ध्यान में व्यतीत करना। यह एक प्रकार की तपस्या है जो हमारे ऋषि मुनि सब की भलाई के लिए किया करते थे। इससे असंख्य आध्यात्मिक ऊर्जा पैदा होती है जो विश्व कल्याण में अत्यंत लाभदायक है।


जिज्ञासा- अज्ञातवास की परंपरा किसने शुरू की? क्या भौतिक संसार में रहते हुए आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करना असंभव है?


उत्तर- अज्ञातवास की परंपरा भगवान राम के सतयुग काल से चली आ रही है। ये भगवान विष्णु द्वारा प्रारम्भ की गई। आध्यात्मिक ऊर्जा केवल चतुर्मास या अज्ञातवास में जाने से ही प्राप्त नहीं होती। अज्ञातवास गृहस्थों के लिए नहीं हैं क्योंकि गृहस्थ कुरिचक हैं अर्थात जो एक जगह रहता है। इसे संन्यासी ही कर सकते है क्योंकि वे परिव्राजक हैं अर्थात जो सदैव चलते रहते हैं। संन्यासी अज्ञातवास में रह सकता है लेकिन भौतिक संसार में रहते हुए गृहस्थी के लिए शास्त्रों में बहुत सुंदर लिखा है कि सतयुग में तप से शक्ति मिलती थी। त्रेता में यज्ञ से प्राप्त हुई और द्वापर में ज्ञान अर्जित करने से। कलियुग में केवल नाम जपने से ही आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त हो जाएगी।


कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।


रश्मि जी 'भोजन' और 'भजन' मनुष्य मात्र के लिए है। अन्य प्राणियों के लिए भोजन ही आवश्यक है। भोजन में । की मात्रा अधिक है लेकिन । हटा देने से भजन रह जाएगा। इसे करना ही मनुष्य जीवन का मात्र उद्देश्य है।


 चतुर्मास में भौतिकता में लिपटे गृहस्थों के लिए-


श्वास श्वास पर हरि भजो


वृथा श्वास पर खोओ


न जाने इस श्वास को


आवन होए न हो।


सदा अपने भीतर स्मरण रखो- आगहे अपनी मौत से कोई बसर नहीं सामां है सौ बरस का पल की खबर नहीं।।


अपने जन्म दिन पर सभी खुशियाँ मनाते हैं लेकिन साथ ही यह भी याद रखें-


हे गाफिल! हे घड़ियाल तुझे देता है ये मुनादि, मालिक ने घड़ी उम्र की एक और घटा दी। 


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