एकता की सच्ची भावना (राधा और कृष्ण का एकत्व)


द्वापर युग में भगवान ने कृष्ण के रूप में मथुरा में अवतार लिया। जन्मते ही उनको गोकुल गांव में नन्द के यहां भेज दिया गया था क्योंकि उनका मामा कंस उनके प्राण लेना चाहता थानंद के घर में उनका पालन-पोषण गोप के रूप में हुआ। गोकुल की गोपियां कृष्ण को बहुत प्यार करती थीं। उनके प्रेम की कहानियां और गीत आज तक लोगों की जबान पर हैं। इनमें राधा नाम की लड़की को कृष्ण से अत्यधिक प्रेम था। यह प्रेम अलौकिक था। यह सारे संसार में प्रसिद्ध हो गयाआज भी लोग कृष्ण के नाम के साथ राधा का नाम मिलाकर राधाकृष्ण कहकर उनकी याद करते हैं।


एक बार कृष्ण ने एक विशाल भोज दिया। इस समय तक कृष्ण राजा बन चुके थे। भोज में देश-देश के राजे-महाराजे, मंत्री, सामंत, बड़े-बड़े विद्वान और प्रसिद्ध व्यक्ति निमंत्रित किए गए थे। किन्तु बड़े आश्चर्य की बात थी कि कृष्ण ने अपनी प्रिय राधा को निमंत्रण नहीं भेजा। कृष्ण के प्रधानमंत्री ने कृष्ण से राधा के पास निमंत्रण भेजने के लिए बहुत अनुरोध कियापरन्तु कृष्ण ने उनकी बातें नहीं मानीं। और इंकार कर दिया। परन्तु प्रधानमंत्री को यह बात ठीक नहीं मालूम हुई। वे स्वयं राधा के यहां गये। उन्होंने राधा से भोज के बारे में बताया और कृष्ण द्वारा राधा के पास निमंत्रण न भेजने की बात भी बताई। इसे सुनकर राधा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। वे प्रधानमंत्री से बोलीं, जब आप के यहां भोज होता है तब आप किस-किस के पास निमंत्रण भेजते हैं?


प्रधानमंत्री ने कहा, अपने संबंधियों और इष्टमित्रों के पास। राधा ने पूछा, क्या आप अपने पास निमंत्रण नहीं भेजते?


इस प्रश्न से मंत्री को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, भला कहीं कोई अपने आप को भी निमंत्रण देता है? राधा बोलीं, तो फिर कृष्ण मुझे क्यों निमंत्रण भेजते। मैं और कृष्ण दोनों एक ही हैं। हम में किसी प्रकार का अन्तर या पार्थक्य नहीं है। प्रधानमंत्री चुपचाप लज्जित होकर लौट गयेउनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था।


निष्कर्ष : एकत्व की सच्ची भावना होने पर बाह्य प्रेम प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।


Popular Posts