मनोवृति - किसी की असहमति या अस्वीकृति से परेशान न हों


कुछ लोग अपनी, अपने कार्यों या विचारों की दूसरों के द्वारा की जाने वाली असहमति या अस्वीकृति से बहुत असंतुलित हो जाते हैं| वे यह अनुभव करना शुरु कर देते हैं कि वे दूसरों की तुलना में हीन और अयोग्य हैं। इसके फलस्वरूप उनमें निराशा और अवसाद (डिप्रेशन) बढ़ने लगता है। यदि आप ऐसा करते हैं तो एक बहुत गलत धारणा बना रहे हैं कि आपको अस्वीकार करने वाला व्यक्ति सदा सही है और आप सदैव गलत, कारण, ऐसा सदैव सच नहीं होता क्योंकि आपको अस्वीकार करने वाला व्यक्ति तकनीकी रूप से आपका मूल्यांकन करने के अयोग्य हो सकता है अथवा वह आपके विरुद्ध द्वेष और विपक्षी मनोभाव रखने वाला हो सकता है इसलिए उसे आप सही कैसे मान सकते हैं। आपको अपने बारे में की गई दूसरों की टिप्पणियों को केवल उनके विचारों के रूप में लेना चाहिए।



आपको दूसरों के प्रत्येक भिन्न विचार या मत पर अपना मानसिक संतुलन बिगाड़ने की आवश्यकता नहीं बल्कि असलियत तो यह है कि जब कोई व्यक्ति आपके या आपके कार्यों के संबंध में अपना मत प्रकट करता है तो उससे आपके बजाय कहीं ज्यादा उसकी मानसिक रुचि और स्तर का पता चलता है।



ऐसे अवसरों पर आपको दूसरे के विचारों या निर्णयों से प्रभावित होने की बजाय कुछ रुककर स्वयं अपना मूल्यांकन करना चाहिए। यदि आप अपने व्यक्तित्व को वास्तव में और अधिक विकसित करने की आवश्यकता अनुभव करते हैं तो वैसा करिए| इसके विपरीत दूसरे के विचारों में कोई सार्थकता नहीं पाने पर उसकी उपेक्षा कर दीजिए बजाय इसके कि आप उसके बारे में निरन्तर विचार करके उसे और अधिक महत्व दें|


व्यवहार और बातचीत में आत्म-केन्द्रित होने से बचिए


कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी पूरी बातचीत 'मैं', 'मुझे', 'मेरा' से भरी रहती है, जैसेकि- 'मैं ही यह कर सकता हूं', 'मैंने यह काम किया है', 'मुझे यह पसन्द है', आदि-आदि। उनके वार्तालाप से ऐसा लगता है मानों सारी दुनिया में सिर्फ वे ही हैं और उनके सिवाय संसार में कुछ नहीं है| सच यह है कि केवल अपने बारे में विचार करना या बातें करते रहना एक बहुत संकीर्ण और निम्नस्तर की चेतना का प्रतीक है, जिसके द्वारा हम अपने आपको बहुत छोटा बना लेते हैं। इस प्रकार से हम इस विश्व के एक अंग नहीं रहते और परमात्मा की महान लीला में एक हिस्से की तरह भाग लेने से वंचित रह जाते हैं। हम अपने को अलग महसूस करते हैं और इसीलिए कष्ट पाते हैं और दूसरों के साथ असामंजस्यता महसूस करते हैंअपने आपको इस विश्व का एक अंग समझिये और परमात्मा की उस महान लीला" के हिस्से बनिये जो इस जगत में प्रकट हो रही है। आप दूसरे लोगों से भिन्न नहीं हैं। हम सभी के समान लक्ष्य और आवश्यकताएं हैं। हम सभी का परमात्मा से एक जैसा संबंध है।


 


Popular Posts