नई शिक्षा नीति - मौलिकता का नया आकाश


सर्वप्रथम आप सभी सुधी पाठकों को जन्माष्टमी एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामानाएं। कोरोना-काल में यह पहला स्वतंत्रता दिवस हम मनाने जा रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार स्वतंत्रता दिवस समारोह किस रूप में मनाया जाएगा\ खासकर इसे देखते हुए कि 5 अगस्त को अयोध्या में हुए भव्य कार्यक्रम में बहुत सीमित संख्या में लोगों को बुलाया गया था। इस उत्सुकता के बीच सरकार ने बच्चों के लिए नया आकाश रचते हुए नई शिक्षा नीति का ऐलान किया है। इस शिक्षा नीति के लागू होने से बच्चों को आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी। हमने पहले भी कई अवसरों पर इसका जिक्र किया है कि बच्चों को परंपरा से हटकर सोच विकसित करनी होगी। अपनी ओम् पाठशाला में बच्चों को नैतिक शिक्षा के अलावा उनकी स्वतंत्र सोच विकसित करने में मदद करती हूं।


मुझे खुशी है कि नई शिक्षा नीति में 'कैसे सोचना है' पर जोर दिया गया है। दरअसल यह वो धरातल होगा, जिस पर बच्चे को अपनी दिशा तय करने में मदद मिलेगी| एक बार बच्चों को सोचना आ जाएगा, फिर उन्हें आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। और यही तो प्रधानमंत्री का इस कोरोना-काल में देशवासियों से आह्वान है। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था उस देश की चिंतन परंपरा से निकलनी चाहिए। भारत की चिंतन परंपरा सर्वसमावेशी है। सबके लिए शिक्षा और गुणवत्तायुक्त शिक्षा ही भारत के भाग्योदय का मूल आधार है। यह संकल्प तभी पूरा हो सकता है जब प्रत्येक छात्र की रुचि, आकांक्षा व आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा मिले। दरअसल ज्ञान का खजाना बाहर नहीं बल्कि मनुष्य के अन्दर है। हम याद रखें कि कोई भी देश नकल कर आगे नहीं बढ़ सकता हैआगे बढ़ने के लिए मौलिक होना आवश्यक है। मौलिकता के लिए नवीनता, सृजनशीलता और स्वाभाविकता अनिवार्य होती है। नई शिक्षा नीति में स्वभाषा में शिक्षण पर बल दिया गया है और इसलिए मुझे यकीन है कि भारत को अब विश्व-गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता।


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