नई शिक्षा नीति

https://theomfoundation.orgमातृभाषा की प्रतिबद्धताएं एवं चुनौतियां


नई शिक्षा नीति : वर्तमान एवं भविष्य को संवारने का महायज्ञ



नई शिक्षा नीति को नई धार देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ एक परिपत्र नहीं है बल्कि इसका क्रियान्वयन एक महायज्ञ की तरह है और इसके लिए सभी हितग्राहियों की मजबूत इच्छाशक्ति और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होगी। क्योंकि नई शिक्षा नीति में क्या सोचना है' के बजाय 'कैसे सोचना है' पर बल दिया गया है। और इसलिए नई शिक्षा नीति की देश भर में व्यापक चर्चा हो रही है। अलग-अलग क्षेत्र के लोग, अलग-अलग विचारधाराओं के लोग, अपने विचार प्रकट कर रहे हैं और इसकी समीक्षा कर रहे हैं। चर्चा जितनी ज्यादा होगी, उतना ही लाभ देश की शिक्षा व्यवस्था को मिलेगा। नई शिक्षा नीति में कोशिश होगी कि सीखने के लिए जिज्ञासा, खोज और चर्चा आधारित और विश्लेषण आधारित तरीकों पर जोर दिया जाए। इससे बच्चों में सीखने की ललक बढ़ेगी और उनके क्लास में  उनकी भागीदारी भी बढ़ेगी। इस पर तो सभी एकमत होंगे किबच्चों के घर की बोली और स्कूल में पढ़ाई की भाषा एक ही होने से बच्चों के सीखने की गति बेहतर होती है। और यही कारण है इस शिक्षा नीति में जहां तक संभव हो, पांचवीं कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाने पर सहमति दी गई है।


इससे बच्चों की नींव तो मजबूत होगी ही, उनकी आगे की पढ़ाई के लिए भी उनका आधार और मजबूत होगा। रिसर्च बताती हैं कि मातृभाषा में शुरुआती शिक्षा से बच्चों के दिमाग का पूर्ण विकास होता है। उनकी तर्क एवं विश्लेषण क्षमता बढ़ती है।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों के सम्मान का भी विशेष ध्यान रखा गया है। एक प्रयास यह भी है कि भारत का जो टैलेंट है, वह भारत में ही रहकर आने वाली पीढ़ियों का विकास करे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर बहुत जोर है। वे अपनी स्किल्स लगातार अपडेट करते रहें, इस पर बहुत जोर है। ___ मातृभाषा की प्रतिबद्धता हम सभी जानते हैं कि बेहतर संवाद के लिए मातृभाषा अहम् है। और इसलिए दुनिया के सभी विकसित देशों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं रही हैं। अनुभव बताते हैं कि बच्चा मातृभाषा में शिक्षा को आसानी से ग्रहण करता हैमातृभाषा के माध्यम से शिक्षा हासिल करने वाले विद्यार्थी की अधिगम क्षमता ज्यादा होती है। अपनी भाषा के साथ जो मजबूत मनोबल जुड़ा होता है उससे भी बच्चे के व्यक्तित्व विकास में इजा होता है उसकी तार्किक दृष्टि भी विकसित होती है। अध्ययन बताते हैं कि मातृभाषा में बच्चे का शिक्षण उसके मानसिक, भावनात्मक और नैतिक विकास को भी प्रभावित करता है। मातृभाषा में शिक्षण सरल और सहज बन जाता है


सहज बन जाता हैभाषा और गणित का मेल भाषा और गणित को नई नीति में प्राथमिकता मिलना बच्चों में लेखन के कौशल और नवाचार का संचार करेगा। सृजनात्मक गतिविधियों का वातावरण पैदा करेगा। शिक्षण के परम्परागत तौर-तरीकों को नई टैक्नोलॉजी के जरिए नवोन्मेष के साथ कहानी, नाटक, समूह चर्चाएं, लेखन और स्मार्ट डिसप्ले बोर्ड, अध्ययन, अध्यापन और संवाद की नई संस्कृति का विकास नई शिक्षा नीति को वाकई नया तो बनाता है। तकनीकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की पहल कोरोना संकट के कारण नई नीति को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में ले जायेगी। इसके लिए कंप्यूटर, लैपटॉप व फोन आदि के जरिए शिक्षण को रोचक बनाने में टैक्नोलॉजी शिक्षा के भावी परिदृश्य को बहुत हद तक बदल भी देगी|


नवाचार एवं अनुसंधान पर जोर 


भारत सुपर पावर बनने के अपने सपने को साकार कर सकता है। इस महान उद्देश्य को पाने की दिशा में विज्ञान, तकनीक और अकादमिक क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान करने के अभियान को तीव्र करना होगा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आधार बनने वाली इस नयी शिक्षा नीति से इस दिशा में बड़ी उम्मीद हैनई शिक्षा नीति के साथ जुड़े नए आयाम, नए मुकाम हासिल कराने में महती भूमिका निभाएंगे। नई शिक्षा नीति जिस तरह से मातृ भाषा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ नए भारत के निर्माण का आधार प्रस्तुत करती हैइससे नव-सृजन और नवाचारों के जरिए समाज में नए प्रतिमान उभरेंगे। मातृभाषा जब शिक्षा का माध्यम बनेगी तो मौलिकता समाज में रचनात्मकता का अभियान छेड़ेगी। नई नीति में शिक्षा अधिकार कानून के नए क्षैतिजों का विस्तार समाज के कमजोर तबकों को मुख्य धारा में समावेशित करने के नए अवसर उपलब्ध करायेगाशिक्षा को सतत् विकास व ज्ञानवान समाज बनाने की ओर उन्मुख करेगा।


क्या लड़कियों की स्कूल वापसी सुनिश्चित होगी?


मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, हर साल 16.88 प्रतिशत लड़कियां आठवीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं। इनमें से कई लड़कियां कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर की जाती हैं। कम उम्र में मां बनने की वजह से कई लड़कियों की असमय मौत हो जाती हैं। मगर विश्लेषकों के अनुसार, इन सभी समस्याओंकी शुरुआत उस वक्त होती है जब किसी लड़की को सातवीं-आठवीं के बाद स्कूल छोड़ना पड़ता है। सरकार बीते कई दशकों से इस समस्या से निपटने की कोशिश कर रही है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। वहीं कोरोना वायरस महामारी लड़कियों को स्कूल से और दूर करती दिख रही है। ऐसे समय में केंद्र सरकार की ओर से लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक ताजा हवा के झोंके जैसी हैनई शिक्षा नीति के तहत लड़कियों और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ‘लिंग समावेशन निधि' का गठन किया जाएगा


सुधार की आस अभी तक शासकीय विद्यालयों में पूर्व प्राथमिक शिक्षा न होने के कारण वे पिछड़ते गए और निजी विद्यालय नर्सरी कक्षाएं चलाकर बच्चों को अपनी ओर ले जाने में रूल हुए। नई नीति में 15 वर्ष (5+3+3+4) की प्राथमिक शिक्षा कर दी गई है। तीन से आठ वर्ष के बच्चे (नर्सरी से कक्षा 2 तक) पूर्व-प्राथमिक के नाम से पढ़ेंगे। इसे बुनियादी शिक्षा भी कहा गया है। यह लचीली और सहज और खेलकूद पर आधारित होगी, बच्चों को बचपन से ही तीन भाषाएं सिखाने का प्रावधान किया गया है।


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